
झारखंड में नेता प्रतिपक्ष का अभाव, संवैधानिक संस्थाओं में रुकी नियुक्तियां
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सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में झारखंड में सूचना आयुक्त की नियुक्ति में विलंब पर संज्ञान लिया और तल्ख टिप्पणी की थी. न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति एन कोटेश्वर सिंह की खंडपीठ ने कहा कि अदालतों के निर्देश के बावजूद सिर्फ नेता प्रतिपक्ष नहीं होने के आधार पर सूचना आयुक्त की बहाली नहीं होना एक गंभीर विषय है.
झारखंड में आपको आरटीआई के तहत सूचना नहीं मिल पाएंगी. कोई पीड़िता अपने साथ हुए अत्याचार की शिकायत महिला आयोग में नहीं कर पाएगी. भ्रष्टाचार पर लगाम कसने के लिए लोकायुक्त भी नहीं है. ये सब इसलिए की इन संवैधानिक संस्थाओं में सदस्य एवं चेयरपर्सन दोनों की जगह खाली है, वहीं संस्थाएं डिफंक्शन पड़ी हैं. राज्य में नेता प्रतिपक्ष के नहीं होने से रिक्तियों को भरा नहीं जा पा रहा है. हालत के लिए सरकार विपक्ष को और विपक्ष इसके लिए सरकार को दोषी ठहरा रही है.
सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में झारखंड में सूचना आयुक्त की नियुक्ति में विलंब पर संज्ञान लिया और तल्ख टिप्पणी की थी. न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति एन कोटेश्वर सिंह की खंडपीठ ने कहा कि अदालतों के निर्देश के बावजूद सिर्फ नेता प्रतिपक्ष नहीं होने के आधार पर सूचना आयुक्त की बहाली नहीं होना एक गंभीर विषय है. सर्वोच्च अदालत ने अब सबसे बड़े विपक्षी दल को एक सदस्य नामित करने के लिए दो हफ्तों का समय दिया है, ताकि उनको सूचना आयुक्त के चयन समिति में शामिल किया जा सके.
पूरी तरह से ठप पड़ा है कामकाज
झारखंड में एक मुख्य सूचना आयुक्त और 10 सूचना आयुक्त के पद सृजित हैं. वर्तमान में सभी पद खाली हैं. 30 नवंबर 2019 से मुख्य सूचना आयुक्त का पद खाली है, जबकि मई 2020 से राज्य सूचना आयोग में एक भी सूचना आयुक्त नहीं है. राज्य सूचना आयोग का कामकाज पूरी तरह ठप है. विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष का पद खाली होने की वजह से कई आयोग डिफंक्शन्ड हैं. राज्य के सूचना आयोग, महिला आयोग समेत अन्य आयोगों में अध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्ति नहीं हो पा रही है.
'जानबूझकर लटकाया जा रहा मामला'
सदन में नेता प्रतिपक्ष नहीं होने की वजह से कई आयोग का काम प्रभावित हो रहा है. इस मसले पर लंबे समय से राजनीति भी हो रही है. सत्ताधारी दल कई बार कह चुके हैं कि जब बाबूलाल मरांडी का मामला स्पीकर के ट्रिब्यूनल में था तो फिर उन्हें किसी दूसरे को नेता प्रतिपक्ष मनोनीत करना चाहिए था. बीजेपी जानबूझकर मामले को लटका रही थी. इसलिए विलम्ब हुआ. अगर ऐसा नहीं होता तो 2024 से पहले ही नियुक्ति हो जाती.

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