
'जो भारत में हो रहा, वो कहीं यहां भी ना हो जाए', नेपाल में क्यों दी जा रही चेतावनी?
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उत्तराखंड के जोशीमठ हादसे के बाद भारत के पड़ोसी देश नेपाल के लोग भी डरे हुए हैं क्योंकि नेपाल के पहाड़ी क्षेत्रों में भी हाल के वर्षों में तेजी से विकास हुआ है. हिमालय क्षेत्रों में बढ़ती नाजुकता को देखते हुए लोग संशय में हैं कि पहाड़ की बस्तियां सुरक्षित हैं या नहीं.
ऐसे तो नेपाल पर भूकंप का खतरा मंडराता ही रहता है. पिछले एक साल की बात करें तो नेपाल में कुल 28 बार भूकंप आया है. लेकिन भारत के उत्तरी राज्य उत्तराखंड के जोशीमठ हादसे के बाद पड़ोसी देश नेपाल के लोग और भी डरे हुए हैं. नेपाल के एक्सपर्ट्स को डर सताने लगा है कि अगर वक्त रहते नहीं संभले तो जोशीमठ जैसा हादसा उनके यहां भी हो सकता है.
उत्तराखंड के चमोली जिले का जोशीमठ भी भारत के सबसे ज्यादा भूकंप वाले इलाके जोन-5 में आता है. जोशीमठ में पिछले कुछ दिनों से जमीन धंसने और जमीन के नीचे से पानी रिसने की घटनाएं सामने आ रही हैं. सरकार बड़े स्तर पर यहां के लोगों को दूसरी जगहों पर शिफ्ट कर रही है.
जोशीमठ पर्यटन का केंद्र भी है और यहां हर साल टूरिस्ट की संख्या बढ़ती जा रही है. यहां पर बद्रीनाथ और हेमकुंड साहिब के पवित्र तीर्थस्थलों पर जाने वाले तीर्थयात्रियों के साथ-साथ हिल स्टेशन औली जाने वाले पर्यटक भी रुकते हैं.
जोशीमठ की घटना को लेकर नेपाल के विशेषज्ञ कड़ी चेतावनी दे रहे हैं. विशेषज्ञों का कहना है कि जब हम नाजुक पहाड़ों में सड़कों और बिजली परियोजनाओं का निर्माण करते हैं, तो उसके परिणाम खतरनाक होते हैं.
उत्तराखंड में घरों के दरकने और जमीन धंसने की घटना नेपाल के लिए भी रेड अलर्ट है, क्योंकि नेपाल के पहाड़ी क्षेत्रों में भी हाल के वर्षों में तेजी से विस्तार हुआ है. नेपाल में पहाड़ की ढलानों पर भारी बुनियादी ढांचे का निर्माण किया गया है. हिमालय क्षेत्रों में बढ़ती नाजुकता को देखते हुए लोग संशय में हैं कि पहाड़ की बस्तियां सुरक्षित हैं या नहीं.
क्यों धंस रहा है जोशीमठ

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