जब शास्त्री की अस्थियां लेकर कुंभ पहुंची थीं इंदिरा... नेहरू से मोदी तक जब नेताओं की डुबकी बनी चर्चा का केंद्र
AajTak
प्रयाग में महाकुंभ की तैयारियां चल रही हैं. लाखों लोगों के पहुंचने की उम्मीद है. कुंभ की कथाएं, मान्यताएं और कहानियां हर दिन आपकी आंखों के सामने से गुजर रही हैं. वैसे तो कुंभ की मान्यताओं का इतिहास वेदों, पुराणों और तमाम ऐतिहासिक किताबों में मिलता है. लेकिन इस कुंभ का एक राजनीतिक पहलू भी है, जिसका जिक्र जरूरी है...
बात 1942 की है जब प्रयागराज में कुंभ का आयोजन देखने तत्कालीन वायसराय लॉर्ड लिनिलिथगो पहुंचे थे. गंगा किनारे लाखों की संख्या में लोगों की भीड़ देख वो हैरान रह गए. उन्होंने अपने साथ चल रहे मदनमोहन मालवीय से पूछा कि इतनी भीड़, इतना बड़ा आयोजन... इसके लिए तो काफी पैसा खर्च हुआ होगा? इसपर मालवीय ने कहा कि हां सिर्फ दो पैसे खर्च हुए हैं. वायसराय ने हैरानी जताते हुए कहा कि क्या आप मजाक कर रहे हैं. फिर मालवीय ने अपनी जेब से एक दो पैसे का कैलेंडर निकाला और कहा कि इसमें गंगा स्नान की तारीख लिखी है. लोग इसे देखते हैं और खुद ही चले आते हैं. इसके लिए किसी को निमंत्रण नहीं देना पड़ता. ये आस्था का सैलाब है...
एक बार फिर प्रयाग में महाकुंभ की तैयारियां चल रही हैं. लाखों लोगों के पहुंचने की उम्मीद है. कुंभ की कथाएं, मान्यताएं और कहानियां हर दिन आपकी आंखों के सामने से गुजर रही हैं. वैसे तो कुंभ की मान्यताओं का इतिहास वेदों, पुराणों और तमाम ऐतिहासिक किताबों में मिलता है. लेकिन इस कुंभ का एक राजनीतिक पहलू भी है, जिसका जिक्र जरूरी है...
जब 'विद्रोह का प्रतीक' बना कुंभ
आजादी के पहले भी कुंभ में आस्था की भारी भीड़ देखने को मिलती थी. मुगल राज के समय भी कुंभ में हजारों की संख्या में लोग पहुंचते थे. मुगल शासकों को डर था कि इस कुंभ की भारी भीड़ से विरोध के स्वर फूट सकते हैं. लिहाजा उन्होंने कई बार कुंभ पर सख्तियां करने की कोशिशें की. उदाहरण की बात करें को मुगल काल से पहले तैमूर ने 1398 में हरिद्वार में गंगा किनारे सैकड़ों लोगों को मौत के घाट उतारा था. तैमूर ने अपनी आत्मकथा ‘तुजुक-ए-तैमूरी’ में इसका जिक्र किया है.
जब अंग्रजों का समय आया तो भी ये डर बना रहा. अंग्रेजों को भी हमेशा लगता रहा कि कुंभ से उनकी हुकूमत खतरे में पड़ सकती है. लिहाजा उन्होंने भी इसे रोकने के लिए कई कोशिशें की. कभी ट्रेन की मनाही की तो कभी और कुछ सख्तियां. लेकिन आस्था का सैलाब रुका नहीं. गंगा स्नान को लेकर अंग्रेजों की इस नफरत को देखते हुए महात्मा गांधी ने 1918 में प्रयागराज में संगम स्नान किया था. हालांकि, इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता है कि कुंभ से कई बार बदलाव की मांग भी उठी है.
6.5 किलोमीटर लंबी यह सुरंग लद्दाख क्षेत्र में देश की रक्षा जरूरतों के लिहाज से बेहद महत्वपूर्ण है और यह केंद्र शासित प्रदेश को देश के बाकी हिस्सों से भी जोड़ती है. प्रमुख इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट के निर्माण में शामिल एक अधिकारी के अनुसार, अगर मौसम अच्छा रहा तो पीएम मोदी खुद जाकर सुरंग का उद्घाटन कर सकते हैं.
तिरुपति के प्रसिद्ध बालाजी मंदिर में भयानक भगदड़ मच गई. दर्शन के लिए टोकन लेने के दौरान यह हादसा हुआ. लगभग 4000-5000 श्रद्धालु लाइन में खड़े थे. इस भगदड़ में तीन श्रद्धालुओं की मौत हो गई और सैकड़ों लोग घायल हुए हैं. घायलों को नजदीकी अस्पतालों में भर्ती कराया गया है. पुलिस ने भीड़ को तितर-बितर कर दिया है और स्थिति को नियंत्रण में ले लिया है. मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू ने टीटीडी चेयरमैन से बात की है. जल्द ही प्रेस कॉन्फ्रेंस की जाएगी.
हजारों श्रद्धालु वैकुंठ द्वार दर्शन टोकन के लिए तिरुपति के विभिन्न टिकट केंद्रों पर कतार में खड़े थे. यह घटना उस समय हुई जब श्रद्धालुओं को बैरागी पट्टीडा पार्क में कतार में लगने की अनुमति दी गई थी. भगदड़ मचने से वहां अफरा-तफरी मच गई, जिसमें 6 लोगों की मौत हो गई. इनमें मल्लिका नाम की एक महिला भी शामिल है.