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'चुन लीजिए, अच्छी जिंदगी चाहिए या अकाउंट में पैसा...', मोदी सरकार के इस दिग्गज अर्थशास्त्री ने फ्रीबीज का साइड इफेक्ट बता दिया
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देश का खर्चा पानी देख रहे दिग्गज अर्थशास्त्री और वित्त आयोग के अध्यक्ष अरविंद पनगढ़िया ने फ्रीबीज के मुद्दे पर देश की जनता से दो टूक संवाद किया है. उन्होंने कहा है कि सरकारें जनता चुनती है और उन्हें तय कर लेना चाहिए कि वे अकाउंट में कैश चाहती हैं या फिर अच्छी सुविधाएं. वित्त आयोग के रोल पर उन्होंने कहा कि लोकतंत्र में आखिरी फैसला चुनी हुई सरकारें करती है.
"किसी आदमी को तुम एक मछली दो, तो तुम एक दिन के लिए उसका पेट भरोगे लेकिन अगर किसी आदमी को मछली पकड़ना सिखा दो तो तुम जीवन भर के लिए उसका पेट भरने का उपाय कर दोगे." किसी बुद्धिमान व्यक्ति का ये कथन भारत में फ्रीबीज कल्चर के पनपने की पूरी कहानी कहता है.
चुनाव की घोषणाएं, घोषणापत्र के वायदों और देश की सरकारों का ट्रेंड देखें तो लगता है कि सरकार को फिलहाल जनता को रोजाना मछली देना ही मुफीद लग रहा है. क्योंकि ये 'आसान काम' है. सरकार मछली पकड़ने जैसा उद्यम जनता को सिखाने पर ज्यादा जोर नहीं दे रही है. या फिर इसके लिए मौके मुहैया नहीं करा रही है.
लेकिन इस 'आसान काम' का असर लंबे समय के लिए घातक है. इसी नुकसान की ओर इशारा किया है नरेंद्र मोदी सरकार के शीर्ष अर्थशास्त्री ने . 16वें वित्त आयोग के अध्यक्ष अरविंद पनगढ़िया ने देश में फ्रीबीज इकोनोमी के चलन पर गंभीर चिंता जताते हुए कहा है कि अब लोगों को तय कर लेना चाहिए कि उन्हें मुफ्त की चीजें चाहए अथवा बेहतर सड़कें, अच्छी नालियां और स्वच्छ पानी सप्लाई.
चुन लीजिए, अच्छी सुविधाएं चाहिए या अकाउंट में पैसा
अरविंद पनगढ़िया ने गोवा की राजधानी पणजी में थे. जब उनसे पूछा गया था कि राज्यों द्वारा बुनियादी विकास के लिए आवंटित फंड का इस्तेमाल जनता को मुफ्त की रेवड़ियां देने में करना कितना चिंताजनक है. तो उन्होंने कहा कि अगर पैसा विकास परियोजनाओं के लिए दिया गया है, तो उसका इस्तेमाल उन्हीं कामों के लिए होना चाहिए. लेकिन लोकतंत्र में अंतिम फैसला चुनी हुई सरकार ही करती है.
देश में विकास योजनाओं का खाका बनाने वाली नीति आयोग के उपाध्यक्ष रहे अरविंद पनगढ़िया ने राज्यों द्वारा अपनाए जा रहे इस ट्रेंड पर चिंता जताते हुए कहा, "ये निर्णय वित्त आयोग द्वारा नहीं लिए जाते. वित्त आयोग व्यापक आर्थिक स्थिरता के समग्र हित में इस मुद्दे को उठा सकता है. आयोग सामान्य स्तर पर कुछ कह सकता है, लेकिन यह नियंत्रित नहीं कर सकता कि राज्य राशि को कैसे खर्च करना चाहते हैं."
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