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घोड़ा काला था या सफेद, इस बात पर लगी शर्त और फिर... जानिए प्रयाग की जमीन पर कैसे पहुंचा अमृत
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प्रयाग में कुंभ पर्व मनाए जाने के एक कारण में सर्पों का भी बड़ा योगदान माना जाता है. महाभारत के आदिपर्व में शामिल आस्तीक पर्व में सर्पों के योगदान का उल्लेख है, जिसमें इसकी पूरी पौराणिक कथा मौजूद है. कथा के अनुसार, ऋषि कश्यप की विवाह, प्रजापति दक्ष की कई पुत्रियों से हुआ था. इनमें उनकी दो पत्नियां थीं, कद्रू और विनता. एक बार कश्यप मुनि ने प्रसन्न होकर उन्हें वरदान मांगने को कहा.
महाकुंभ 2025 के लिए प्रयागराज पूरी तरह तैयार है. उत्तर प्रदेश की इस धार्मिक नगरी में देश-विदेश से श्रद्धालु जुटने शुरू हो गए हैं. पौष पूर्णिमा के दिन से महाकुंभ में दिव्य स्नान की परंपरा शुरू हो जाएगी. अनुमान है कि इस बार 40 करोड़ से अधिक श्रद्धालु कुंभ स्नान के लिए पहुंचने वाले हैं. पुराण कथाएं कहती हैं कि महाकुंभ का आयोजन अमृत की खोज का परिणाम है, लेकिन यह कथा सिर्फ इतनी ही नहीं है. कुंभ से जुड़ी एक और कथा जिक्र पुराणों में मिलता है, जिसकी कहानी नागों से जुड़ी हुई है. इस कथा के केंद्र में भी अमृत ही है.
ऋषि कश्यप और उनकी दो पत्नियों की कथा प्रयाग में कुंभ पर्व मनाए जाने के एक कारण में सर्पों का भी बड़ा योगदान माना जाता है. महाभारत के आदिपर्व में शामिल आस्तीक पर्व में सर्पों के योगदान का उल्लेख है, जिसमें इसकी पूरी पौराणिक कथा मौजूद है. कथा के अनुसार, ऋषि कश्यप की विवाह, प्रजापति दक्ष की कई पुत्रियों से हुआ था. इनमें उनकी दो पत्नियां थीं, कद्रू और विनता. एक बार कश्यप मुनि ने प्रसन्न होकर उन्हें वरदान मांगने को कहा.
सगी बहनें थी कद्रू और विनता कद्रू ने अपने लिये हजार, शक्तिशाली संतानों की मांग की और विनता ने केवल दो, लेकिन योग्य संतानें ही मांगीं. वरदान के प्रभाव से कद्रू हजार सर्पों की माता बनीं. उधर, विनता को संतान के रूप में सिर्फ 2 अंडे प्राप्त हुए थे, जिनमें कई दिनों से कोई हलचल नहीं थी. अपनी बहन को जल्दी मां बन जाते देख एक दिन विनता से रहा नहीं गया और उसने एक अंडे को फोड़ कर देखने की कोशिश की, इसमें क्या है?
विनता ने जल्दबाजी में कर दी बड़ी गलती जैसे ही विनता ने अंडा फोड़ा, तो उसमें से दो बड़े-बड़े पंखों वाला और बलिष्ठ शरीर वाला विशालकाय पक्षी निकला, लेकिन अंडा जल्दी में फोड़ देने के कारण वह विकसित नहीं हो सका था, इसलिए पैरों से कमजोर हो गया. अपूर्ण शरीर के साथ पैदा हुई इस संतान का नाम 'अरुण' रखा गया. अपनी मां की जल्दबाजी कर दिए जाने से अरुण उनसे खिन्न थे. इसलिए वह सूर्यलोक चले गए और सूर्यदेव के सारथि बन गए. जाते-जाते अरुण ने अपनी मां से कहा कि अगर तेजवान पुत्र चाहती हैं तो इस अंडे को मत फोड़ना.
दोनों बहनों के बीच बढ़ गई सौत भावना इसके कुछ दिनों पर विनता की दूसरी संतान ने जन्म लिया. यह परमशक्तिशाली पुत्र गरुड़ के नाम से जाना गया. उधर, कद्रू और विनता के बीच सौतन की भावना बढ़ती जा रही थी. एक दिन कद्रू ने विनता से पूछा, इंद्र के घोड़े उच्चैश्रवा का रंग काला है या सफेद? विनता ने कहा, सफेद है, कद्रू अड़ गई और बोली कि नहीं, काला है. इस बात का निर्णय करने के लिए कद्रू ने कहा, चलो चलकर देख आते हैं, लेकिन उसने शर्त रखी कि जो हारेगा, उसे दासी बनकर रहना पड़ेगा.
इंद्र के घोड़े के रंग को लेकर लगी शर्त दूसरे दिन कद्रू ने अपने सर्प पुत्रों को बुलाया और कपटपूर्वक उच्चैश्रवा घोड़े के रंग को काला बनाने को कहा. सांपों ने मां के छल में साथ दिया और कर्कोटक नाम का सर्प उस घोड़े की पूँछ में जाकर लिपट गया और उसे काला बना दिया. इसके बाद विनता को दिखाया गया कि यह घोड़ा काले रंग का है. कद्रू की इस कपट को विनता समझ गई, किंतु शर्त के अनुसार वह हार गई और उसे कद्रू की दासता में रहना पड़ा. गरुड़ को भी अपनी माँ के साथ उन सब सर्पों की सेवा करनी पड़ती थी.
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