क्यों ब्रिटेन को बनानी पड़ी चरमपंथ की नई परिभाषा, जिसपर हो रहा है बवाल?
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ब्रिटेन राजनेता माइकल गोव ने एक्सट्रीमिज्म की नई परिभाषा तैयार की, जिसे पूरे देश में लागू किया जाएगा. चरमपंथ की ये नई परिभाषा विचारधारा पर बात करती है. पहले भी वहां इसके लिए कुछ नियम थे, लेकिन अबकी बार इस परिभाषा पर ब्रिटिश नेता बुरी तरह घिर रहे हैं. जानिए, क्यों वहां की सरकार को पुरानी परिभाषा बदलनी पड़ी, और क्यों इसका विरोध हो रहा है.
ब्रिटिश लीडरों ने चरमपंथ की नई परिभाषा जारी की है. इसके तहत कुछ खास समूहों को सरकारी फंडिंग और अधिकारियों से मीटिंग से रोक दिया जाएगा. इन ग्रुप्स को क्रिमिनलाइज नहीं किया जाएगा, लेकिन कई पाबंदियां लग जाएंगी. एक्सट्रीमिज्म की इस परिभाषा के लागू होते ही वहां विरोध होने लगा है.
साल 2011 में चरमपंथ की सरकारी परिभाषा कुछ अलग थी. इसके अनुसार, ब्रिटिश वैल्यू और लोकतंत्र को नुकसान पहुंचाने वाली विचारधारा को इसके तहत रखा गया. इसमें अलग-अलग धर्म और आस्था को इज्जत देने की बात भी कही गई, लेकिन ज्यादा जोर लोकतंत्र पर था.
नई परिभाषा आइडियोलॉजी पर ज्यादा बात करती है. ये कहती है कि अलग कोई विचारधारा हिंसा, नफरत और विरोध पर फोकस करती है. ऐसी सोच, जिससे यूके की उदार सोच को नुकसान पहुंचे, या जिस सोच की वजह से वातावरण खराब होता हो, वो चरमपंथ है.
इससे क्या बदलेगा ऐसे ग्रुप्स को सरकारी फंडिंग नहीं दी जाएगी, जो नई परिभाषा के तहत आते हैं. न ही सरकारी अधिकारी ऐसे समूह के लोगों से बात कर सकेंगे.
क्यों पड़ी बदलाव की जरूरत सरकार का कहना है कि 7 अक्टूबर को हमास के हमले के बाद से उनके यहां भी चरमपंथी सोच बढ़ी. वे नई परिभाषा के जरिए एक्सट्रीम राइटविंग और इस्लामिक चरमपंथियों, दोनों पर लगाम लगाना चाहते हैं.
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