
क्या है पट्टाभिषेक... जिसके बाद किन्नर अखाड़े की महामंडलेश्वर बनेंगी अभिनेत्री रहीं ममता कुलकर्णी, जानिए प्रोसेस
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पिंडदान के बाद एक बार फिर से स्नान होता है. इस स्नान के बाद शुद्धिकरण हो जाने के बाद गुरु की ओर से भभूत, कपड़े और कंठी (एक तरह की माला) दी जाती है. फिर ईष्टदेव की पूजा होती है और इसके बाद दंड-कमंडल दिया जाता है. इस पूरी प्रोसेस को पंचकर्म कहा जाता है.
बॉलीवुड एक्ट्रेस ममता कुलकर्णी शुक्रवार को किन्नर अखाड़े में महामंडलेश्वर बनने जा रही हैं. खबरों के मुताबिक आज शाम पहले वह पिंडदान की प्रक्रिया करेंगी. इसके बाद उनका पट्टाभिषेक किया जाएगा. यह कार्यक्रम किन्नर अखाड़े में ही संपन्न होगा. ममता कुलकर्णी ने किन्नर अखाड़े की आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी डॉ. लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी महाराज, जूना अखाड़े की महामंडलेश्वर स्वामी जय अम्बानंद गिरी के साथ मुलाकात भी की थी. इस मुलाकात की तस्वीरें जबसे सामने आई, तबसे ही इसकी भी चर्चा होने लगी है कि अभिनेत्री रहीं ममता कुलकर्णी कैसे किन्नर अखाड़े में शामिल होंगी?
कुंभ के दौरान दिए जाते हैं अखाड़ों में पद महाकुंभ के आयोजन का एक उद्देश्य यह भी होता है कि इसमें नए साधुओं का अखाड़ा प्रवेश और संन्यासियों को नागा दीक्षा दिलवाई जाती है. इसके लिए जो भी जरूरी अनुष्ठान होते हैं, वह कुंभ के ही साथ आयोजित होते हैं. इसी दौरान अखाड़ों में पद भी दिए जाते हैं, जिनमें कोतवाल, खजांची, भंडारी जैसे पद शामिल होते हैं. इसके साथ ही नागा, सदर नागा जैसी उपाधियां भी मिलती हैं. कुंभ के ही दौरान अखाड़े महंत, श्रीमहंत और महामंडलेश्वर जैसे पद भी देते हैं. इनकी भी एक प्रक्रिया होती है, जिसमें पिंडदान करना और पट्टाभिषेक किया जाना मुख्य होता है.
प्रयागराज के महाकुंभ में किन्नर अखाड़ा भी पहुंचा हुआ है. इस अखाड़े की स्थापना इसी सदी में साल 2015 में उज्जैन में की गई थी. किन्नर अखाड़े में किस तरह महामंडलेश्वर बनाए जाते है और इसके क्या नियम हैं इस बारे में 'आजतक' से किन्नर अखाड़े की महामंडलेश्वर कौशल्या नंदगिरी 'टीना मां' ने बातचीत की थी. कौशल्या नंदगिरी की मानें तो अन्य अखाड़ों की तरह ही किन्नर अखाड़ा भी संचालित होता है. सन्यास आदि दिलाने की प्रक्रिया भी एक जैसी होती है. महामंडलेश्वर या अन्य उपाधि लेने वाले लोगों के आचार, विचार को परखते हैं. इसके अलावा वह यह भी देखते हैं कि,वह गृहत्यागी है या नहीं. किसी को संन्यास दिलाने से पहले ये परखना जरूरी होता है.
कैसे होती है संन्यास की दीक्षा? किन्नर अखाड़े को जूना अखाड़े ने ही अपने साथ जोड़ा था. जूना अखाड़े में ही सबसे महिला नागा संन्यासी भी हैं. साल 2013 में जूना अखाड़े ने अपने से जुड़े माई बाड़ा को भी दशनामी संन्यासियों के अखाड़े का स्वरूप दे दिया था. धनंजय चोपड़ा की किताब (भारत में कुंभ) के मुताबिक, अखाड़े ही गुरु ही तय करती हैं कि दीक्षा दिए जाने के योग्य कौन है. योग्यता परख लेने के बाद दीक्षा की प्रोसेस शुरू होती है. इसमें सबसे पहले सांसारिक वस्त्र (आम जीवन में पहने जाने वाले कपड़े) का त्याग करके अखाड़े ,से मिले पीले या भगवा कपड़े पहनने होते हैं. इसके बाद नदी स्नान होता है और इस स्नान के बाद ही गुरु की देखरेख में पिंडदान कराया जाता है.
पिंडदान के बाद एक बार फिर से स्नान होता है. इस स्नान के बाद शुद्धिकरण हो जाने के बाद गुरु की ओर से भभूत, कपड़े और कंठी (एक तरह की माला) दी जाती है. फिर ईष्टदेव की पूजा होती है और इसके बाद दंड-कमंडल दिया जाता है. इस पूरी प्रोसेस को पंचकर्म कहा जाता है.
क्या होता है पट्टाभिषेक? अखाड़ों में कुछ विशेष साधु-संतों को विशेष जिम्मेदारी दी जाती है. ये जिम्मेदारी पदवी के साथ जुड़ी होती है और इस पदवी के दिए जाने का ऐलान ही 'पट्टाभिषेक' की प्रक्रिया कहलाती है, इसे आसान भाषा में ऐसे समझिए कि जब किसी व्यक्ति को राज्य संम्हालने के लिए उसे तिलक लगाकर मुकुट पहनाया जाता है, फिर उसे सिंहासन पर बैठाया जाता है और माला पहनाकर उस पर फूल-अक्षत बरसाए जाते हैं. ठीक इसी तरह से संत समाज में भी किसी विशेष साधु या संत को जब कोई जिम्मेदारी दी जाती है तो उसका स्वागत और सम्मान किया जाता है.

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