
क्या पुतिन से मिलकर नरेंद्र मोदी रोक सकेंगे चीन की बढ़ती हिमाकत?
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पीएम नरेंद्र मोदी की रूस यात्रा पर न केवल पश्चिमी देशों की नजरें हैं बल्कि चीन भी नजर गड़ाए हुए है. इसके साथ ही अंतरराष्ट्रीय राजनीति में रूस और भारत भी दोनों की जरूरत बन चुके हैं. क्या भारत को उम्मीद करनी चाहिए कि चीन को लेकर उसकी चिंताएं कुछ कम होंगी?
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आज और कल यानि 8 और 9 जुलाई को दो दिन रूस के दौरे पर रहेंगे. तीसरी बार सत्ता संभालने के बाद पीएम मोदी का ये पहला रूस दौरा है और पहला द्विपक्षीय विदेशी दौरा भी. भारत के लिए यह दौरा इसलिए भी महत्वपूर्ण हो गया है क्योंकि एकतरफ नाटो देशों का सम्मेलन हो रहा है तो दूसरी तरफ घरेलू मोर्चे पर भारतीय मीडिया और विपक्ष चीन की बढ़ती हिमाकत को लेकर चिंता व्यक्त कर रहे हैं. रूस भारत का बहुत पुराना मित्र रहा है पर बदलते अंतरराष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में भारत अमेरिका समेत पश्चिम के भी करीब आ चुका है. दूसरी ओर रूस चीन के करीब जा चुका है. जाहिर है कि मोदी के रूस दौरे पर न केवल पश्चिम की नजर है बल्कि चीन की भी निगाहें हैं. मोदी के पास मौका है कि वह रूस की दोस्ती के बहाने चीन को संदेश दे सकते हैं. भारतीय प्रधानमंत्री के पास चीन और पाकिस्तान को कूटनीति में पटकनी देकर वोटर्स के बीच महफिल लूटने का मौका होता है. पीएम मोदी के पास मौका है कि वो रूस की दोस्ती के बहाने चीन को कुछ ऐसा संदेश दें जिससे देश में उनकी वाह-वाह हो जाए. आइये देखते हैं कि किस तरह नरेंद्र मोदी के पास मौका है कि् वो चीन को संदेश देकर भारत में अपने विदेश नीति की एक बार फिर धाक जमा सकते हैं.
1-रूस को भी है भारत की जरूरत
भारत रूस के संबंधों में तेल ख़रीद एक बड़ा मुद्दा रहा है. भारत और रूस दोनों एक दूसरे के लिए जरूरत बन गए. हालांकि देखा जाए तो भारत के लिए यह एक चैलेंज रहा है. पश्चिम को नाराज कर रूस से तेल खरीदना आसान नहीं था. पाकिस्तान जैसा देश जो चीनी कैंप का आज अहम भागीदार है वो भी रूस से तेल खरीदने की हिमाकत नहीं कर सका. अप्रैल में आईसीआरए की छपी एक स्टडी के मुताबिक़, भारत ने बीते 23 महीनों में रूस से तेल खरीदकर करीब 13 अरब डॉलर बचाए हैं. इसके साथ ही यूक्रेन युद्ध के बाद से रूस आज दुनिया के राजनीति में अलग-थलग पड़़ चुका है. चीन को छोड़कर दुनिया का कोई और महत्वपूर्ण देश उसके साथ नहीं खड़ा है. अंतरराष्ट्रीय मामलों के एक विशेषज्ञ के हवाले से ब्लूमबर्ग लिखता है कि मोदी के रूस दौरे पर पुतिन ये दिखाना चाहते हैं कि रूस अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अलग-थलग नहीं पड़ा है और ये उसके लिए काफ़ी अहम है.
2-भारत के पास है चीन को संदेश देने का मौका
वॉल स्ट्रीट जर्नल की एक रिपोर्ट के हवाले से बीबीसी लिखता है कि भारत रूस से अपने संबंधों में ज़ोर इसलिए दिखाना चाहता है ताकि वह चीन को जवाब दे सके. एक तरफ तो भारत रूस को आश्वस्त करना चाहता है कि हम पुराने साथी हैं और रूस को चीन का पिछलग्गु बनने की जरूरत नहीं है. क्योंकि भारत भी उसके साथ है.जैसे जरूरत पड़ने पर तेल खरीदकर और अमेरिकी दबावों के बावजूद रूस से लगातार हथियार खरीद कर भारत रूस से दोस्ती निभाता रहा है. भारत पुतिन को यह भी बताएगा कि मोदी के रूस दौरे को पश्चिमी देशों की ओर से हैरत भरे क़दम के तौर पर देखा जा रहा है.इसमें कोई दो राय नहीं हो सकती कि भारतीय सीमाओं पर चीन की कुदृष्टि बनी हुई है. कभी अरुणाचल प्रदेश के बहाने तो कभी पैंगोंग पर अवैध गतिविधियों से चीन भारत को परेशान करता रहा है. रूस की अब अंतरराष्ट्रीय स्तर पर वो पोजिशन नहीं है जो सोवियत संघ के जमाने में हुआ करती थी. पर सैन्य ताकत और परमाणु हथियारों के बल पर रूस आज भी पूरी दुनिया को चिंता में डाल देता है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ पुतिन के संयुक्त बयान में अगर भारत की चीनी सीमाओं से संबंधी चिंताओं पर कोई व्यक्तव्य आता है तो यह भारत के लिए एक फौरी राहत के तौर पर माना जाएगा.
3- इसी हफ्ते SCO समिट से दूर रहकर भारत ने दिया था संदेश शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) का वार्षिक शिखर सम्मेलन, वर्तमान अध्यक्ष, कजाकिस्तान में 3 और 4 जुलाई को आयोजित किया गया था. उस शिखर सम्मेलन की सबसे महत्वपूर्ण घटना प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी की अनुपस्थिति थी, जो 2017 में भारत के एससीओ में शामिल होने के बाद पहली बार इसमें शामिल नहीं हुए थे. हालांकि भारत ने इस सम्मेलन में हिस्सा लिया पर पीएम ने अपनी अनुपस्थिति से चीन को कड़ा संदेश देने की कोशिश की थी. कहा यह गया कि 18वीं लोकसभा के पहले संसद सत्र की शुरुआत के चलते पीएम इस सम्मेलन में उपस्थित होने में असमर्थ हैं. पर इसका असली कारण चीन को यह बताना था कि वर्तमान में चीन के साथ भारत के संबंध सामान्य नहीं हैं. पीएम मोदी को जुलाई महीने में ही रूस जाना ही था और वहां ब्लॉदिमीर पुतिन से मुलाकात पहले ही तय थी. इसलिए भारत ने चीनी वर्चस्व वाले एससीओ समिट से पीएम मोदी ने दूरी बना ली थी.

पाकिस्तान द्वारा बलूचिस्तान पर जबरन कब्जे के बाद से बलूच लोग आंदोलन कर रहे हैं. पाकिस्तानी सेना ने पांच बड़े सैन्य अभियान चलाए, लेकिन बलूच लोगों का हौसला नहीं टूटा. बलूच नेता का कहना है कि यह दो देशों का मामला है, पाकिस्तान का आंतरिक मुद्दा नहीं. महिलाओं और युवाओं पर पाकिस्तानी सेना के अत्याचार से आजादी की मांग तेज हुई है. देखें.