![कैसे अपने ही लोगों का कातिल बना हमास! मदद के लिए मिले पैसों से खरीद रहा हथियार](https://akm-img-a-in.tosshub.com/aajtak/images/story/202311/r-sixteen_nine.jpg)
कैसे अपने ही लोगों का कातिल बना हमास! मदद के लिए मिले पैसों से खरीद रहा हथियार
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सात अक्टूबर को इजरायल पर हुए हमले में 1400 इजरायलियों की मौत हुई. बाद में इजरायल की जवाबी कार्रवाई में गाजा और वेस्ट बैंक में लगभग 10 हजार फिलिस्तीनी नागरिकों की मौत हुई. लेकिन 2015 में जब यमन में हूती विद्रोहियों ने वहां की सरकार का तख्तापलट किया था तो गृहयुद्ध छिड़ गया था.
हमास के खिलाफ इजरायल की जंग का सोमवार को 31वां दिन है. सात अक्टूबर से लेकर अब तक गाजा और वेस्ट बैंक में मरने वाले फिलिस्तीनी नागरिकों का आंकड़ा 10 हजार तक पहुंच गया है. इस जंग में इजरायल के 144 सैनिक भी मारे गए हैं. हमास जहां इसे सबसे बड़ा जिहाद बता रहा है. वहीं, फिलिस्तीन के नाम पर उसका समर्थन करने वाले इजरायल को मुसलमानों का सबसे बड़ा हत्यारा बता रहा है. लेकिन मुसलमानों का सबसे बड़ा कातिल और सबसे बड़ा दुश्मन इजरायल नहीं है.
सात अक्टूबर को इजरायल पर हुए हमले में 1400 इजरायलियों की मौत हुई. बाद में इजरायल की जवाबी कार्रवाई में गाजा और वेस्ट बैंक में लगभग 10 हजार फिलिस्तीनी नागरिकों की मौत हुई. लेकिन 2015 में जब यमन में हूती विद्रोहियों ने वहां की सरकार का तख्तापलट किया था तो गृहयुद्ध छिड़ गया था. उस समय सऊदी अरब ने नौ देशों का गठबंधन बनाकर यमन में हस्तक्षेप किया था. उस युद्ध में डेढ़ लाख मुसलमान मारे गए थे जिनमें ज्यादातर नागरिक थे.
दूसरी तरफ सीरिया में बशर अल असद ने जब अपनी सत्ता कायम की तो विद्रोहियों को कुचलने के लिए अंधाधुंध कार्रवाई की. बताया जाता है कि तब सीरिया में दो लाख मुसलमान मारे गए थे. इसके बावजूद ये मुसलमान देश सीरिया को अपना सबसे बड़ा दुश्मन बताते हैं जबकि ये असल में मुसलमानों के दुश्मन हैं.
मुसलमानों का एक ऐसा ही दुश्मन तुर्किए भी है. पिछले दिनों तुर्किए के राष्ट्रपति एर्दोगन ने अपनी संसद में कहा था कि हमास आतंकी संगठन नहीं है. हमास मुजाहिदीनों का वो संगठन है, जो अपने देश की आजादी की लड़ाई लड़ रहा है. अगर ऐसा है तो उन्हीं मुजाहिदीनों ने जब तुर्किए के एयरबेस पर धावा बोला तो उन पर वाटर कैनन से पानी की बौछार क्यों की गई? आंसू गैस के गोले क्यों दागे गए? उनकी आजादी की लड़ाई में एर्दोगन की पुलिस रुकावट क्यों बन गई? असल में एर्दोआन हमास के प्रचारक बनकर अपनी सियासत तो चमका सकते हैं, लेकिन वो भी जानते हैं कि हमास और उसके समर्थक आतंकी ही हैं.
एर्दोआन 2014 के बाद से तुर्की के राष्ट्रपति हैं और अपनी कट्टर इस्लामी छवि को भुनाकर दूसरी बार भी चुनाव जीतने में कामयाब रहे. लेकिन आतंक की आग देश में ना फैले तभी कुर्सी बची रहेगी. इसलिए जब से हमास का इजरायल पर हमाल हुआ है तब से वो रैलियों में फिलिस्तान के नाम पर तुर्किए में इस्लामी जाप जप रहे हैं. लेकिन रविवार को जब फिलिस्तीन के नाम पर अमेरिकी बेस पर हमला हुआ तो एर्दोआन उसे कुचलने पर उतर आए.
कैसे हमास बना अपनों का दुश्मन?
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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की व्हाइट हाउस में हुई मुलाकात ने दोनों नेताओं के बीच गहरी मित्रता को दर्शाया. ट्रंप ने मोदी को 'आई मिस यू' कहकर स्वागत किया, जबकि मोदी ने दोनों देशों के संबंधों को '1+1=111' बताया. दोनों नेताओं ने व्यापार, सुरक्षा और द्विपक्षीय संबंधों पर चर्चा की. ट्रंप ने मोदी को 'महान नेता' और 'खास व्यक्ति' बताया. मोदी ने 2030 तक द्विपक्षीय व्यापार को 500 अरब डॉलर तक पहुंचाने का लक्ष्य रखा. दोनों नेताओं ने यूक्रेन युद्ध पर भी चर्चा की और शांति की आवश्यकता पर जोर दिया.
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अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की बैठक में दोनों देशों के बीच बढ़ते रक्षा सहयोग पर गहन चर्चा की गई. इस चर्चा में अमेरिका ने भारत को F-35 स्टेल्थ फाइटर जेट्स, स्ट्राइकर कॉम्बैट व्हीकल्स और जावलिन मिसाइल्स की पेशकश की. विशेषज्ञों का विचार है कि ये हथियार भारत की आत्मनिर्भरता नीति के सटीक अनुरूप नहीं हैं.
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रूस-यूक्रेन जंग को खत्म करने का ब्लू प्रिंट अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने लगभग तैयार कर लिया है. इससे पहले ट्रंप ने रूस के राष्ट्रपति पुतिन और यू्क्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की से फोन पर बातचीत की. ट्रंप चाहते हैं कि नाटो में शामिल होने की जिद्द यूक्रेन छोड़ दे लेकिन जेलेंस्की ने अपने देश की सुरक्षा का हवाला दिया है.
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PM नरेंद्र मोदी और अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप के बीच हुई मुलाकात में कई महत्वपूर्ण मुद्दों पर चर्चा हुई. आतंकवाद से निपटने में सहयोग बढ़ाने पर सहमति बन गई, जिसमें ठाकुर हसन राणा के प्रत्यर्पण का विषय भी शामिल था. फार्मास्यूटिकल क्षेत्र में भारत-अमेरिका के सहयोग पर भी वार्ता हुई, जहाँ अमेरिकी बाजार में भारतीय जेनेरिक दवाओं की भारी मांग है.