
कुंभ, हज, वेटिकन मास... तीन धर्मों के 3 बड़े जमघट, समझें दुनिया के सबसे बड़े आयोजनों का अर्थशास्त्र!
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कुंभ हो या हज यात्रा या फिर क्रिश्चयन समुदाय का वेटिकन मास, धर्म की पुकार सदियों से इंसानों को एक स्थान पर खींचता आया है. हर सभ्यता में मनुष्य एक तय समय पर अपने ही जैसे विश्वास के लोगों से मिलता है और अनुष्ठान कर एक बेहतर जिंदगी की कामना करता है. कैसे एक स्थान पर जमा होते हैं लोग, क्या है परंपराएं, क्या होता है वहां अर्थशास्त्र? पढ़ें इस विस्तृत रिपोर्ट में.
धर्म और आस्था की डोरी सदियों से मानवों को अपनी ओर खींचती आई है. धर्म का भाव, मुक्ति की कामना लाखों लोगों को एक सूत्र में पिरोता है. इसलिए ऐसी गतिविधियों में मनुष्य बिना बुलाये ही भारी संख्या में जमा हो जाता है. दुनिया में हर स्थान पर धार्मिक क्रियाओं के लिए दुनिया के हर कोने में एक निश्चित स्थान पर लाखों-करोड़ों लोग एक स्थान पर जमा होते हैं.
सनातन, इस्लाम, ईसाइयत हर धर्म के लोग अपनी परंपरा को मनाने के लिए एक निश्चित स्थान पर जमा होते हैं. मान्यता है कि सनातन में कुंभ की परंपरा लगभग 2500 सालों से ज्यादा समय से चलती आ रही है, इस्लाम के मानने वाले लगभग 1400 सालों से हज पर जाते रहे हैं जबकि क्रिश्चयन समुदाय के लोग 1700 सालों से ईस्टर संडे मनाते आ रहे हैं. वेटिकन मास का आयोजन भी सालों से होता आ रहा है.
सवाल उठता है कि लोगों का कौन सा जुटान 'मास गेदरिंग' कहलाता है. विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार “किसी निश्चित स्थान पर किसी निश्चित उद्देश्य के लिए एक निश्चित अवधि के लिए एक निश्चित संख्या से अधिक व्यक्तियों का एकत्र होना” मास गेदरिंग है. यहां व्यक्तियों की संख्या 1000 से कम भी हो सकती है, लेकिन उपलब्ध दस्तावेज से पता चलता है कि 25,000 से अधिक व्यक्तियों की सभा को सामूहिक सभा माना जाता है.
महाकुंभ
कुंभ की चर्चा वेदों में तो हैं बावजूद इसके इस वृहद धार्मिक आयोजन के शुरू होने की कोई तारीख स्पष्ट नहीं है. लेकिन आज के स्टैंडर्ड के लिहाज से ये पृथ्वी पर सबसे बड़ा धार्मिक आयोजन है.
कुंभ मेला हर 12 साल में एक बार आयोजित किया जाता है. हिन्दुओं को विश्वास है कि विशेष तिथियों में गंगा, यमुना और सरस्वती (अदृश्य) के संगम में स्नान से मनुष्य जन्म और मृत्यु के चक्र से मुक्त होता है.

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