कुंभ में 1954 और 2013 में भी मची थी भगदड़, जांच रिपोर्ट्स में लापरवाही तो सामने आई, लेकिन एक्शन...
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1954 और 2013 में कुंभ मेले के दौरान भगदड़ में कई लोगों की जान गई, लेकिन जांच रिपोर्ट्स में सरकार को क्लीन चिट दे दी गई. प्रशासनिक लापरवाही और भीड़ नियंत्रण में गड़बड़ी तो सामने आई, लेकिन क्या कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई?
हाल ही में प्रयागराज में महाकुंभ के दौरान हुई भगदड़ में 30 लोगों की मौत हो गई और 60 से ज्यादा घायल हो गए. इस घटना के बाद उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने न्यायिक जांच के आदेश दिए हैं. यह जांच तीन सदस्यीय पैनल करेगा, जिसकी अध्यक्षता इलाहाबाद हाईकोर्ट के सेवानिवृत्त जस्टिस हर्ष कुमार कर रहे हैं.
इस पैनल का मकसद घटना के कारणों की जांच करना और भविष्य में ऐसी घटनाएं रोकने के उपाय सुझाना है. लेकिन यह पहली बार नहीं है जब कुंभ मेले में इस तरह की भगदड़ हुई हो. 1954 और 2013 में भी ऐसी ही दर्दनाक घटनाएं हुई थीं, जिनमें कई लोगों की जान गई थी. इन घटनाओं की जांच रिपोर्ट्स में प्रशासनिक लापरवाही और भीड़ प्रबंधन में कमियों को उजागर किया गया था.
आइए, 1954 और 2013 की उन भगदड़ की घटनाओं को फिर से देखें और जानें कि उन जांचों में क्या निष्कर्ष निकले थे.
1954 कुंभ भगदड़
1954 का कुंभ मेला 14 जनवरी से 3 मार्च तक प्रयागराज (तब इलाहाबाद) में आयोजित हुआ था. यह आजादी के बाद का पहला कुंभ था और इसमें करीब 50 लाख लोग संगम पर एकत्र हुए थे. 3 फरवरी को मौनी अमावस्या के दिन इस मेले में भीषण भगदड़ मच गई, जिसमें बड़ी संख्या में लोगों की मौत हो गई.
इस हादसे की जांच के लिए उत्तर प्रदेश सरकार ने तीन सदस्यीय समिति बनाई थी. इसमें इलाहाबाद हाईकोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश कमलकांत वर्मा, यूपी सरकार के पूर्व सलाहकार डॉ. पन्ना लाल और सिंचाई विभाग के मुख्य अभियंता ए.सी. मित्रा शामिल थे. इस समिति का काम था हादसे के कारणों की पड़ताल करना और भविष्य में ऐसी घटनाओं से बचने के उपाय सुझाना.
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