
किताबों से मुगलों का चैप्टर गायब होने पर मुस्लिम देशों में भी छिड़ी बहस
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मुस्लिम देशों की मीडिया ने इतिहासकारों के हवाले से लिखा है कि इतिहास की किताबों से मुगलों का अध्याय हटाकर मुगलों की सांस्कृतिक स्मृति को मिटाने की कोशिश की जा रही है. रिपोर्टों में कहा गया है कि इससे छात्रों के इतिहास की समझ पर असर पड़ेगा.
भारत में 12वीं की इतिहास की किताबों से मुगल साम्राज्य से जुड़े 28 पन्नों के एक अध्याय को हटाने पर विवाद खड़ा हो गया है. इतिहासकारों और शिक्षाविदों ने इस पर कदम पर भारी नाराजगी जताते हुए कहा है कि इसका उद्देश्य भारतीय इतिहास में मुगलों की महत्वपूर्ण भूमिका को स्मृति से मिटाना है. इसे लेकर मुस्लिम देशों में भी बहस छिड़ गई है. मुस्लिम देशों की मीडिया ने इस विवाद को प्रमुखता से कवर किया है. अपनी रिपोर्टों में मीडिया ने इतिहासकारों के हवाले से लिखा है कि मुगलों को बदनाम कर इतिहास को फिर से लिखने का प्रयास को कोशिश की जा रही है.
राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (NCERT) ने मुगलों को पाठ्यक्रम से हटाने के पीछे तर्क दिया है कि ऐसा छात्रों पर पाठ्यक्रम के बोझ को कम करने के लिए किया गया है.
मुगलों ने भारत पर 16वीं और 19वीं शताब्दी के बीच शासन किया था. किताबों से मुगलों को हालांकि, पूरी तरह से नहीं हटाया गया है बल्कि कई अध्याय ऐसे हैं, जिनमें मुगलों का जिक्र देखने को मिलता है.
सऊदी अरब
सऊदी अरब के बड़े अखबार ने इतिहासकारों और शिक्षाविदों के हवाले से एक रिपोर्ट प्रकाशित की है. रिपोर्ट में दक्षिण एशिया में इतिहासकारों के सबसे बड़े संघ, इंडियन हिस्ट्री कांग्रेस ने किताबों में इन संशोधनों की निंदा करते हुए कहा कि इसके जरिए एनसीईआरटी ने भारत के अतीत की 'स्पष्ट रूप से पूर्वाग्रही और तर्कहीन धारणा' पेश की है.
'बहुसंख्यक एजेंडे की इच्छा के अनुसार इतिहास को बदलने का प्रयास'

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