कम्युनिस्ट और नेशनलिस्ट के बीच 22 साल चला वो गृहयुद्ध जिससे जन्मा नया देश ताइवान!
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ताइवान और चीन के बीच एक बार फिर तनाव बढ़ गया है. चीन और ताइवान में 70 साल से भी ज्यादा पुराना विवाद है. ताइवान खुद को अलग देश मानता है, जबकि चीन उसे अपना हिस्सा बताता है. 1949 से पहले तक ताइवान देश नहीं हुआ करता था. वामपंथियों से लड़ाई में जब राष्ट्रवादियों की हार हुई, तो वो इस द्वीप पर आकर बस गए और इसे अलग देश घोषित कर दिया.
अमेरिकी सदन की नेता नैंसी पेलोसी ताइवान क्या पहुंची, चीन भड़क गया. चीन पहले से ही पेलोसी के दौरे को लेकर धमकी दे रहा था. लेकिन मंगलवार रात जब नैंसी पेलोसी का विमान ताइवान की राजधानी ताइपे में उतरा, तो चीन की चिढ़ और बढ़ गई.
चीन ने पेलोसी की इस यात्रा को 'बहुत खतरनाक' बताया है. चीन के उप विदेश मंत्री झाई शेंग ने धमकाते हुए कहा कि अमेरिका इस गलती की सजा भुगतेगा. उन्होंने कहा कि ये बहुत खतरनाक कदम है और इसके गंभीर नतीजे होंगे. चीन चुपचाप नहीं बैठेगा.
पेलोसी की यात्रा को लेकर चीन इसलिए चिढ़ा हुआ है, क्योंकि वो ताइवान को अपना हिस्सा मानता है. जबकि, ताइवान खुद को अलग देश मानता है. ताइवान का अपना संविधान है. वहां अपनी चुनी हुई सरकार है. लेकिन आज से 73 साल पहले तक ताइवान अलग देश नहीं था. ताइवान पर कभी चीनी राजवंश का राज हुआ करता था. बाद में ये जापान के हाथ में चला गया. दूसरे विश्व युद्ध के बाद चीन ने कब्जा कर लिया. और फिर राष्ट्रवाद बनाम वामपंथ की लड़ाई ने इसे अलग देश बना दिया.
ताइवान की कहानी कैसे शुरू हुई? ये जानने से पहले इसका भूगोल समझ लेते हैं. ताइवान चीन के दक्षिण पूर्वी तट से 100 मील यानी लगभग 160 किलोमीटर दूर स्थित एक द्वीप है. इसका क्षेत्र 35,980 वर्ग किलोमीटर है. यहां की आबादी 2.36 करोड़ के आसपास है. ताइवान में मंदारीन चीनी, मिन नान चीनी और हक्का भाषा बोली जाती है. ताओ, बौद्ध और ईसाई यहां के प्रमुख धर्म हैं.
अब कहानी ताइवान की...
साल 1542. पुर्तगाली यात्रियों से भरा जहाज जापान जा रहा था. ये जहाज एक छोटे से द्वीप पर आया. ये द्वीप बहुत ज्यादा खूबसूरत था. इन पुर्तगालियों ने इसे 'इल्हा फरमोसा' नाम दिया, जिसका मतलब 'खूबसूरत द्वीप' होता है. पश्चिमी दुनिया में दूसरे विश्व युद्ध तक ताइवान को फरमोसा के नाम से ही जाना जाता था.
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