उत्तराखंड UCC में तलाक के कानून सब धर्मों के लिए अब समान, जानिए मुस्लिमों और ईसाइयों के लिए क्या-क्या बदला
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यूसीसी यानी समान नागरिक संहिता (Uniform Civil Code) के तहत, उत्तराखंड में तलाक के नियम सभी नागरिकों के लिए अब समान हो गए हैं, चाहे वे किसी भी धर्म, जाति या लिंग के हों. यूसीसी का उद्देश्य विवाह, तलाक, उत्तराधिकार और लिव-इन रिलेशनशिप जैसे मामलों में एकरूपता और लैंगिक समानता सुनिश्चित करना है. अब सभी धर्मों के लोगों के लिए तलाक की प्रक्रिया समान होगी. पहले जो धार्मिक या व्यक्तिगत कानूनों के अनुसार अलग-अलग प्रक्रियाएं थीं, वे अब एक हो गई हैं.
उत्तराखंड में यूसीसी लागू हो गया है. लिहाजा अब नियम और प्रथाएं धार्मिक कानून के बजाय देश के कानून पर आधारित होंगी. विवाह से लेकर तलाक के नियम अब सभी के लिए समान हैं. यूसीसी लागू होने के बाद सभी धर्मों के लिए कई चीजें बदल गई हैं, खासकर मुस्लिम और ईसाई समुदाय के लिए तलाक के नियम, जो अब तक धार्मिक कानून पर आधारित थे. आइए जानते हैं कि मुस्लिम और ईसाई धर्म में तलाक के नियम अब तक क्या थे और यूसीसी के बाद अब इनमें क्या बदलाव हुआ है.
इस्लाम में तलाक के नियम
भारत में इस्लाम के लिए मुस्लिम पर्सनल लॉ (शरीयत) आवेदन अधिनियम, 1937 के तहत तलाक के विभिन्न प्रकार हैं. जैसे- तलाक-ए-अहसन या तलाक-ए-हसन. तलाक-ए-बिद्दत को पहले ही 2019 में अपराध घोषित कर दिया गया था. लेकिन यूसीसी के बाद ये सभी प्रकार मान्य नहीं होंगे.
यूसीसी के बाद अब क्या बदलेगा?
अब मुस्लिम पुरुषों को भी हिंदू धर्म की तरह कानूनी प्रक्रिया से तलाक लेना होगा. महिलाओं को भी समान तलाक अधिकार मिलेंगे, यानी खुला और फस्ख के मामलों में ज्यादा कानूनी सहारा मिलेगा. अब कोर्ट की मंजूरी के बिना तलाक मान्य नहीं होगा.
ईसाई धर्म में कैसे होता है तलाक?
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