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इलावर्त, इलाबास, अल्लाहबाद और फिर इलाहाबाद... तीर्थराज प्रयाग के नाम बदलने की पूरी कहानी
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प्रयाग और संगम भूमि के इतिहास को अपने लेखन का विषय बनाते हुए लेखक डॉ. राजेंद्र त्रिपाठी 'रसराज' ने अपनी किताब 'प्रयागराज- कुंभ कथा' में इसके मुगलकालीन इतिहास को विस्तार से लिखा है. वह लिखते हैं कि, 'प्रयाग की महिमा को सुनकर मुगलकालीन सम्राट् अकबर ने ‘कड़ा’ को अपना सूबा बनाया, उसी समय उसे प्रयाग के गंगा-यमुना के संगम का माहात्म्य सुनने को मिला.'
महाकुंभ-2025 के आयोजन की अद्भुत छटा से प्रयागराज की जमीन से लेकर आकाश तक चकाचौंध हो रहा है. यह अब सिर्फ गंगा-यमुना और सरस्वती का ही पौराणिक संगम नहीं रह गया है, बल्कि यह आस्था-विश्वास और परंपरा का भी संगम तट है. युगों से चली आ रही एक सुरक्षित विरासत की जमीन है, जिसने वैदिक युग को पोषण दिया, जिसने पुराणों को उनकी महिमा दी है और दुष्यंत पुत्र भरत के नाम पर भारत कहलाने वाले इस देश को संस्कृति से समृद्ध इतिहास दिया है.
प्रयागराज नदियों के साथ-साथ सभ्यताओं के भी संगम की भूमि रहा है, जिसे कभी इलावर्त, कभी इलाबास, कभी कड़ा तो कभी झूंसी कहा गया. यही इलावास आगे चलकर इलाहावास बना फिर अल्लाहबाद में तब्दील हुआ और इलाहाबाद के नाम से भी जाना गया.
प्रयाग की महिमा पुराणों में गाई गई है, बल्कि इसका पहला वर्णन ऋग्वेद के एक सूक्त में मिलता है. संगम स्नान के विषय में ऋग्वेद के दशम मंडल की एक ऋचा में कहा गया है कि 'जो लोग श्वेत तथा श्याम सरिताओं के संगम पर स्नान करते हैं, वे स्वर्ग को प्राप्त होते हैं और जो धीर प्राणी उस स्थल पर अपने नश्वर शरीर का त्याग करते हैं उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है.'
सितासिते सरिते यत्र सङ्गते तत्राप्लुतासो दिवमुत्पतन्ति, ये वै तन्वं विसृजन्ति धीरास्ते जनासो अमृतत्वं भजन्ते ।। – ऋग्वेद, खिलसूक्त
यहां श्वेत जल गंगा का और श्याम जल यमुना का बताया गया है और इन दोनों जलों का संगम प्रयाग में ही होता है.
पौराणिक काल में इलावास नाम से भी जाना गया प्रयागराज प्राचीन काल में इस क्षेत्र पर ‘इलावंशीय’ राजाओं का आधिपत्य था. अतः इसे इलावास के नाम से भी जाना जाता था. इतिहास कारों का मानना है कि इक्ष्वाकु के समकालीन ‘ऐल’ जाति के लोग मध्य हिमालय क्षेत्र से अल्मोड़ा होते हुए प्रयाग आये थे, उनके राजा ‘इला’ ने प्रतिष्ठानपुर (झूंसी) को अपने राज्य में मिला लिया था. जल्दी ही अयोध्या, विदेह और वैशाली के राज्यों को छोड़कर पूरे उत्तर भारत में तथा दक्षिण में विदर्भ तक ‘इलावंशीय’ सम्राटों की सत्ता काबिज रही.
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