आजमगढ़ में निरहुआ बनाम धर्मेंद्र यादव की चुनावी जंग में ये 6 फैक्टर्स तय करेंगे हार-जीत
AajTak
आजमगढ़ संसदीय सीट एक बार अखिलेश यादव के लिए प्रतिष्ठा का सवाल है. बीजेपी भी आजमगढ़ जीतने के लिए एड़ी-चोटी एक किए हुए है. जातिगत समीकरणों के हिसाब से यह सीट समाजवादी पार्टी की है. पर हार-जीत का फैसला इतना आसान नहीं है.
देश में इस बार बहुत कम ऐसी सीटें हैं जहां मुकाबला बहुत रोचक होने वाला है. अधिकतर जगहों पर जहां कोई बड़ा नाम चुनाव लड़ रहा है वहां उसका प्रतिद्वंद्वी बहुत समान्य है. इस कारण रोचक मुकाबले वाली सीटों की संख्या बहुत कम हैं. समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने आजमगढ़ सीट से अपने परिवार के ही धर्मेंद्र यादव को प्रत्याशी बनाकर आजमगढ़ के मुकाबले को रोचक बना दिया है. अब आजमगढ़ देश की उन चुनिंदा सीटों में से एक हो गया है जहां का मुकाबला कांटें का होने वाला है.
आजमगढ़ में एक तरफ तो भोजपुरी फिल्मों के सुपरस्टार निरहुआ यादव हैं जो फिलहाल आजमगढ़ के सिटिंग एमपी हैं. बीजेपी ने उन्हें फिर से लोकसभा चुनावों में उम्मीदवार बनाने का फैसला लिया है. दूसरी ओर समाजवादी पार्टी ने अपने पुराने प्रत्याशी धर्मेंद्र यादव को ही मैदान में उतारा है जो पिछली बार निरूहआ से चुनाव हार गए थे. पर हारने का अंतर इतना कम था कि इस बार जीत का गणित उनके पक्ष में दिखाई दे रहा है. पर राजनीति अनंत संभावनाओं का खेल है. इसलिए चुनाव परिणाम आने के पहले कुछ भी नहीं कहा जा सकता कि ऊंट किस करवट बैठेगा. आजमगढ़ के लोगों और कई राजनीतिक विश्वेषकों से बातचीत के आधार पर समझ में ये आ रहा है कि आजमगढ़ की लड़ाई में निम्न 6 फैक्टर प्रभावी हो सकते हैं.
1-2019 से कम वोट पाकर भी निरहुआ जीत गए थे उपचुनाव
भोजपुरी सुपर स्टार निरहुआ यादव आजमगढ़ के नहीं हैं पर 2019 से ही वो आजमगढ़ में रह रहे हैं. 2019 में वो अखिलेश यादव से करीब 2 लाख 60 हजार वोटों से चुनाव हार गए थे. पर उन्होंने आजमगढ़ की मिट्टी से अपना नाता नहीं तोड़ा और लगातार जनता के बीच ही रहे. अखिलेश ने चूंकि विधानसभा चुनाव जीतकर प्रदेश की राजनीति में सक्रिय होने का फैसला किया इसलिए उन्होंने आजमगढ़ संसदीय सीट छोड़ दी. बाद में उपचुनाव हुए और इस सीट पर धर्मेंद्र यादव को समाजवादी पार्टी ने प्रत्य़ाशी बनाया पर बीजेपी के निरहुआ यादव से उन्हें हार मिली. हालांकि 2019 के चुनावों में निरहुआ यादव को करीब 361704 वोट मिले थे जो उपचुनावों में घटकर 312000 के करीब हो गए थे. फिर भी निरहुआ ने धर्मेंद्र यादव को करीब 8 हजार वोटों से हराया. उसके बाद निरहू यादव ने आजमगढ़ को अपना कर्म स्थली बना लिया. निरहू समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष और प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के खिलाफ मुखर रहने वाले नेता हैं. क्षेत्र में लगातार उपस्थिति से उनकी छवि आम नेताओं के मुकबाले बेहतर है. इसलिए यहां मुकाबला कांटें का होने वाला है.जीत-हार का फैसला तत्कालीन परिस्थितियों पर निर्भर करेगा.
2- क्या गुड्डू जमाली को केवल बीएसपी के वोट मिले थे
2019 के चुनावों में करीब 3 लाख से अधिक वोटों से जीतने वाली समाजवादी पार्टी कुछ महीने बाद हुए उपचुनाव में करीब 8 हजार वोटों से चुनाव हार जाती है. दरअसल बीएसपी ने एक मुस्लिम प्रत्याशी गुड्ड जमाली को चुनाव में खड़ा कर दिया. गुड्डू जमाली को करीब ढाई लाख वोट पाने में सफल रहे . जाहिर है कि वो समाजवादी पार्टी की हार का मुख्य कारण बने. बीजेपी के निरूहुआ यादव ने समाजवादी पार्टी के धर्मेंद्र यादव को करीब 8 हजार वोटों से हरा दिया.
मणिपुर हिंसा को लेकर देश के पूर्व गृहमंत्री पी चिदंबरम खुद अपनी पार्टी में ही घिर गए हैं. उन्होंने मणिपुर हिंसा को लेकर एक ट्वीट किया था. स्थानीय कांग्रेस इकाई के विरोध के चलते उन्हें ट्वीट भी डिलीट करना पड़ा. आइये देखते हैं कि कांग्रेस का केंद्रीय नेतृत्व क्या मणिपुर की हालिया परिस्थितियों को समझ नहीं पा रहा है?
महाराष्ट्र में तमाम सियासत के बीच जनता ने अपना फैसला ईवीएम मशीन में कैद कर दिया है. कौन महाराष्ट्र का नया मुख्यमंत्री होगा इसका फैसला जल्द होगा. लेकिन गुरुवार की वोटिंग को लेकर सबसे ज्यादा चर्चा जनता के बीच चुनाव को लेकर उत्साह की है. जहां वोंटिग प्रतिशत में कई साल के रिकॉर्ड टूट गए. अब ये शिंदे सरकार का समर्थन है या फिर सरकार के खिलाफ नाराजगी.