आंखों में आंसू, दूध से स्नान, किया खुद का पिंडदान... इस तरह ममता कुलकर्णी बनीं महामंडलेश्वर यामाई ममतानंद गिरि
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ममता कुलकर्णी ने सबसे पहले उन्हीं से मुलाकात की, जिसके बाद किन्नर अखाड़े ने ये ऐलान किया कि वो ममता कुलकर्णी को महामंडलेश्वर की पदवी देगा. अखाड़े की परंपरा के मुताबिक ममता कुलकर्णी को पहले भगवा वस्त्र पहनाए गए फिर माला पहनाए गई. वैदिक मंत्रोच्चारण के बीच उनका सिंदूर और हल्दी से तिलक किया गया. ममता को दूध से स्नान कराया गया. इस दौरान उनकी आंखों में आंसू थे.
फिल्मों में अपने बेहतरीन अभिनय और विभिन्न किरदारों से फैन्स का दिल जीतने वाली अभिनेत्री ममता कुलकर्णी ने महाकुंभ में अपने सांसारिक जीवन का त्याग करते हुए संन्यास ग्रहण कर लिया है. उन्होंने किन्नर अखाड़े में संन्यास लिया और वहां उनका पट्टाभिषेक संपन्न हुआ. अब ममता कुलकर्णी का नया नाम होगा, श्री यामाई ममतानंद गिरि. ममता कुलकर्णी को महामंडलेश्वर की ये पदवी किन्नर अखाड़े ने दी है. ये अखाड़ा वर्ष 2015 में बना था और ये सनातन धर्म के 13 प्रमुख अखाड़ों से अलग है. इस अखाड़े की 'आचार्य महामंडलेश्वर' लक्ष्मीनारायण त्रिपाठी हैं.
अखाड़े की परंपरा के मुताबिक ममता कुलकर्णी को पहले भगवा वस्त्र पहनाए गए फिर माला पहनाए गई. वैदिक मंत्रोच्चारण के बीच उनका सिंदूर और हल्दी से तिलक किया गया. ममता को दूध से स्नान कराया गया. इस दौरान उनकी आंखों में आंसू थे. बता दें कि ममता कुलकर्णी ने शुक्रवार को सबसे पहले उन्हीं से मुलाकात की, जिसके बाद किन्नर अखाड़े ने ये ऐलान किया कि वो ममता कुलकर्णी को महामंडलेश्वर की पदवी देगा. जिस तरह किसी संस्था, कंपनी या सरकार का संचालन अलग-अलग पदों पर बैठे लोग करते हैं, ठीक उसी तरह से अखाड़ों में भी संचालन के लिए 'साधु-संतों' और संन्यासियों को एक पदवी दी जाती है. इनमें सबसे बड़ा पद होता है शंकराचार्य का और दूसरा बड़ा पद होता है महामंडलेश्वर का.
महामंडलेश्वर बनने की प्रक्रिया
महामंडलेश्वर बनने के लिए सबसे पहले व्यक्ति को स्वयं का पिंडदान करना होता है और उसके बाद उनका पट्टाभिषेक किया जाता है. महामंडलेश्वर बनने के लिए ममता कुलकर्णी ने संगम की त्रिवेणी में पवित्र स्नान किया और इसके बाद अपना पिंडदान करके उन्होंने अपनी ममता कुलकर्णी की पहचान को हमेशा के लिए छोड़ दिया. अब वो ममता कुलकर्णी नहीं, बल्कि श्री यामाई ममता नंद गिरि कहलाएंगी और उन्हें किन्नर अखाड़े की महामंडलेश्वर माना जाएगा.
अचानक से महामंडलेश्वर कैसे बन गईं ममता?
बहुत सारे लोग कह रहे हैं कि ममता कुलकर्णी अचानक से महामंडलेश्वर कैसे बन गईं, क्योंकि महामंडलेश्वर बनने के लिए पहले दीक्षा लेनी पड़ती है और एक लम्बी अवधि में तपस्या करके संसारिक जीवन के प्रवृति मार्ग को छोड़ना पड़ता है. अखाड़ों का नियम है कि जो व्यक्ति महामंडमलेश्वर बनता है, उसे संन्यासी होना चाहिए. उसमें संसारिक मोह-माया के लिए त्याग की भावना होनी चाहिए. पारिवारिक संबंधों से दूर होना चाहिए और वेद-पुराणों का ज्ञान होना चाहिए, लेकिन अगर आप ममता कुलकर्णी के जीवन को देखेंगे तो आपको ये पता चलेगा कि कुछ समय पहले तक उनका जीवन विवादों से भरा हुआ था.
ममता कुलकर्णी ने सबसे पहले उन्हीं से मुलाकात की, जिसके बाद किन्नर अखाड़े ने ये ऐलान किया कि वो ममता कुलकर्णी को महामंडलेश्वर की पदवी देगा. अखाड़े की परंपरा के मुताबिक ममता कुलकर्णी को पहले भगवा वस्त्र पहनाए गए फिर माला पहनाए गई. वैदिक मंत्रोच्चारण के बीच उनका सिंदूर और हल्दी से तिलक किया गया. ममता को दूध से स्नान कराया गया. इस दौरान उनकी आंखों में आंसू थे.
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