
अफगानिस्तान मिशन के लिए UNSC में वोटिंग, संयुक्त राष्ट्र का क्या है प्लान?
AajTak
नार्वे के संयुक्त राष्ट्र के राजदूत मोना जुल ने कहा कि यूएनएएमए (अफगानिस्तान के लिए संयुक्त राष्ट्र मिशन) के लिए यह नया जनादेश मानवीय और आर्थिक संकट का जवाब देने के लिए महत्वपूर्ण है.
तालिबान द्वारा संचालित अफगानिस्तान में औपचारिक उपस्थिति को लेकर गुरुवार को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में मतदान हुआ. न्यूज एजेंसी AFP के मुताबिक, संयुक्त राष्ट्र ने जिस प्रस्ताव को पास किया, उसमें तालिबान शब्द का जिक्र नहीं किया गया है. स्पष्ट है कि यूएन ने अफगानिस्तान को लेकर पहल जरूर की है, लेकिन तालिबान के शासन को अभी तक अंतरराष्ट्रीय मान्यता नहीं मिली है.
गुरुवार को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की बैठक में अफगानिस्तान में राजनायिक मिशन के लिए एक साल का जनादेश मिला है. इस प्रस्ताव के पक्ष में 14 वोट पड़े, वहीं रूस इस पूरी प्रक्रिया के दौरान अनुपस्थित रहा. इस प्रस्ताव में महिलाओं, बच्चों और पत्रकारों सहित मानवीय, राजनीतिक और मानवाधिकार मोर्चों पर सहयोग के कई पहलू शामिल हैं. अफगानिस्तान के लिए ये प्रस्ताव नार्वे ने तैयार किया था.
यूएन में इस प्रस्ताव को पास किए जाने के बाद नॉर्वेजियन संयुक्त राष्ट्र की राजदूत मोना जुल ने कहा, 'यूएनएएमए (अफगानिस्तान के लिए संयुक्त राष्ट्र मिशन) के लिए यह नया जनादेश न केवल तत्काल मानवीय और आर्थिक संकट का जवाब देने के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि अफगानिस्तान में शांति और स्थिरता के हमारे व्यापक लक्ष्य तक पहुंचने के लिए भी अहम है.'
उन्होंने कहा कि यूएन के इस कदम से अफगानिस्तान में दोबारा से शांति व्यवस्था को लागू करने में मदद मिलेगी. परिषद इस नए जनादेश के साथ एक स्पष्ट संदेश देना चाहती है कि UNAMA की अफगानिस्तान में शांति और स्थिरता को बढ़ावा देने और अफगान लोगों का समर्थन करने के लिए एक महत्वपूर्ण भूमिका है क्योंकि वे अभूतपूर्व चुनौतियों और अनिश्चितता का सामना करते हैं.
तालिबान सरकार की ओर से जानकारी देते हुए बताया गया है कि आयोग उन अफगानों से संपर्क करेगा जो अफगानिस्तान छोड़ चुके हैं ताकि उनकी वतन वापसी के रास्ते खोले जा सकें. बता दें कि पिछले साल अगस्त में तालिबान के अफगानिस्तान पर कब्जे के बाद काफी संख्या में लोगों ने अफगानिस्तान छोड़ दिया था.

पाकिस्तान द्वारा बलूचिस्तान पर जबरन कब्जे के बाद से बलूच लोग आंदोलन कर रहे हैं. पाकिस्तानी सेना ने पांच बड़े सैन्य अभियान चलाए, लेकिन बलूच लोगों का हौसला नहीं टूटा. बलूच नेता का कहना है कि यह दो देशों का मामला है, पाकिस्तान का आंतरिक मुद्दा नहीं. महिलाओं और युवाओं पर पाकिस्तानी सेना के अत्याचार से आजादी की मांग तेज हुई है. देखें.