अजित पवार के महाराष्ट्र सरकार में शामिल होने से शिंदे खेमा इतना बेचैन क्यों है? जानिए वजह
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महाराष्ट्र में एनसीपी के घमासान, अजित पवार के महायुति सरकार में शामिल होने के घटनाक्रम से शिंदे खेमे की बेचैनी बढ़ गई है. शिंदे समर्थक विधायक अजित पवार के सरकार में शामिल होने से इतने परेशान, इतने बेचैन क्यों हैं?
महाराष्ट्र में विधानसभा का समीकरण बदल गया है, सरकार की तस्वीर बदल गई है. जून के महीने में जो विधायक विपक्ष में थे, अब ट्रेजरी बेंच पर आ चुके हैं. विधानसभा में विपक्ष के नेता रहे अजित पवार अब महाराष्ट्र सरकार में डिप्टी सीएम बन चुके हैं. सरकार को घेरते रहे विधायक अब सरकार का बचाव करते नजर आएंगे. बदलाव की इस बयार से राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) की नींव रखने वाले शरद पवार और उनके समर्थकों के साथ ही महा विकास अघाड़ी में बेचैनी है.
एनसीपी पर कंट्रोल की लड़ाई अब चुनाव आयोग तक पहुंच चुकी है. वहीं, ऐसा भी नहीं है कि कुनबा बढ़ने के बाद सत्ताधारी 'महायुति' में जश्न का माहौल हो. सत्ताधारी गठबंधन में भी हलचल बढ़ी हुई है. एनडीए में अजित पवार की एंट्री और डिप्टी सीएम पद की शपथ लेने के बाद शरद पवार खेमे के बाद अगर कहीं सबसे अधिक बेचैनी नजर आ रही है तो वो है शिवसेना. एकनाथ शिंदे की पार्टी के विधायकों से लेकर मंत्री तक, सभी बेचैन हैं. अब सवाल ये है कि जब गठबंधन का कुनबा बढ़ा, सियासी ताकत बढ़ी तो फिर शिंदे खेमा इतना बेचैन क्यों है?
शिंदे खेमे की बैचैनी की वजह क्या
शिंदे खेमे की इस बेचैनी के पीछे महाराष्ट्र की सियासत को समझ वाले चार प्रमुख वजहें बताते हैं. एक बारगेनिंग पावर कम हो जाना, दूसरा मंत्रिमंडल में कोटे और अहम विभागों को लेकर संघर्ष, तीसरा राजनीतिक भविष्य की चिंता और चौथा लोकसभा के साथ ही विधानसभा सीटों का कोटा. अजित पवार के महाराष्ट्र सरकार में शामिल होने के एकनाथ शिंदे की बारगेनिंग पावर कम हुई है. अजित के आने से पहले तक महाराष्ट्र के गठबंधन में शिंदे जितने ताकतवर थे, अब उतने नहीं रहे.
मंत्रिमंडल में कोटे की लड़ाई
महाराष्ट्र की सरकार में पहले दो बड़े भागीदार थे. एक बीजेपी जो विधानसभा में 105 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी भी है. दूसरी एकनाथ शिंदे की शिवसेना जिसके 40 विधायक हैं. सरकार को छोटे दल, निर्दलीय विधायकों का भी समर्थन है लेकिन बीजेपी-शिवसेना के विधायकों की संख्या बहुमत के लिए जरूरी 145 के जादुई आंकड़े तक पहुंच जा रही थी. ऐसे में मंत्रिमंडल में कोटे को लेकर संघर्ष इन दोनों दलों के बीच था जो अब अजित की एंट्री के बाद त्रिकोणीय हो गया है.
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