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SCO समिट से पहले भारत का जोश हाई, लेकिन इन 4 वजहों से ढीले हैं जिनपिंग के तेवर
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उज्बेकिस्तान के समरकंद में 14 से 16 सितंबर तक SCO समिट होने जा रहा है. इसमें भारत के पीएम मोदी की चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग से मुलाकात होगी या नहीं यह अभी तय नहीं है. लेकिन यह साफ है कि समिट से पहले भारत का जोश हाई है वहीं चीन कई परेशानियों से घिरा हुआ है.
क्या डोकलाम की तरह LAC पर भी चीन के पीछे हटने का टाइम आ गया है? आने वाले कुछ दिनों में इसकी तस्वीर साफ हो जाएगी. उज्बेकिस्तान के समरकंद में 14 से 16 सितंबर तक SCO समिट होने जा रहा है. यहां पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी रूस और चीन के राष्ट्रपति के साथ मंच साझा करने वाले हैं. अमेरिका का करीबी सहयोगी होने के बावजूद भारत के प्रधानमंत्री मोदी अमेरिका के दो सबसे बड़े दुश्मनों के साथ दो दिनों तक मौजूद रहेंगे. ये हिंदुस्तान के आत्मविश्वास दुनिया के मंच पर जोरदार दस्तक है, जिसे चीन को भी मानना होगा.
13 नवंबर 2019, यही वो तारीख थी जब दुनिया की दो सबसे बड़ी आबादी वाले देशों के प्रमुखों ने हाथ मिलाया था. दोनों नेताओं का आमना सामना हुआ था. जगह थी ब्राजील की राजधानी ब्रासीलिया . जहां ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग की मुलाकात हुई थी.
लेकिन सवाल ये है कि करीब 34 महीने बाद दोनों नेता क्या एक दूसरे से मिलेंगे? अगर दोनों की मुलाकात हुई तो क्या इस तरह की पुरानी गर्मजोशी देखने को मिलेगी? क्यों SCO की बैठक के दौरान शी जिनपिंग के मुकाबले पीएम मोदी का आत्मविश्वास ज्यादा होगा ?
तीन साल पहले जब SCO समिट के दौरान पीएम मोदी और शी जिनपिंग मिले थे, तब दोनों नेताओं की बॉडीलैंग्वेज देखते ही बनती थी, क्योंकि मामल्लापुरम की अनौपचारिक शिखर बैठकों से दोनों देशों के बीच आपसी विश्वास बढ़ता दिख रहा था. लेकिन कोरोना के बाद चीन का चेहरा दुनिया के सामने आ गया और उसने महामारी के बीच LAC पर फौज भेजकर हिंदुस्तान के भरोसे का गला घोंट दिया, जिसके तुरंत बाद प्रधानमंत्री ने SCO की वर्चुअल मीटिंग में चीन को खरी-खरी सुना डाली थी.
तब 10 नवंबर 2020 को पीएम मोदी ने साफ-साफ कहा था कि भारत का मानना है कि कनेक्टिविटी को और अधिक गहरा करने के लिए ये आवश्यक है कि एक दूसरे की संप्रभुता और टेरिटोरियल इंटग्रिटी के मूल सिद्धांतों के साथ आगे बढ़ा जाए.
संदेश साफ था, चीन जहां से आया था वहां लौट जाए. पूर्वी लद्दाख में करीब 28 महीनों तक हिंदुस्तान इसी मंत्र के साथ खड़ा रहा, जिससे हारकर चीन तनाव सुलझाने की कोशिशें कर रहा है.
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