
Salaam Venky Film Review: इमोशनल कर देगी वेंकी की जिंदादिली, मां के रूप में काजोल की उम्दा परफॉर्मेंस
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Salaam Venky Film Review: काजोल स्टारर यह फिल्म एक ऐसे लड़के की असल जिंदगी की कहानी है, जो 24 साल की उम्र में इस दुनिया को अलविदा कह जाता है. लेकिन अपने पीछे छोड़ जाता है, जिंदगी जीने का एक अनोखा तरीका...
'सलाम वैंकी' एक ऐसे आम इंसान की कहानी है, जो उसे हर मामले में खास बना देती है. 24 साल के वेकेंटेश को यह बात बचपन से पता थी कि दरवाजे के बाहर खड़ी मौत उसका इंतजार कर रही है. जो उसे किसी भी पल बुला कर साथ ले जा सकती है. 2005 में पब्लिश हुई श्रीकांत मूर्ति की नॉवेल 'द लास्ट हुर्रे' पर आधारित यह फिल्म कोलावेणु वेंकेटेश (Kolavennu Venkatesh) की कहानी है. वेंकेटेशन अका वेंकी मेडिकल टर्म में कहा जाए, तो डीएमडी(Duchenne Muscular Dystrophy) जैसी रेयर बीमारी से ग्रसित है. जिसमें 16 से 17 तक ही इंसान जी पाता है लेकिन वेंकी की इच्छाशक्ति उसे 24 साल तक पहुंचा देती है. हालांकि अपनी मौत के आखिरी पड़ाव के दौरान वेंकी इच्छा मृत्यु के लिए कोर्ट से दरख्वास्त करता है.
कहानी
2005 के बैकड्रॉप में बुनी कहानी है कोलावेणु वेंकेटेश यानी वेंकी(विशाल जेठवा) की, जो डीएमडी बीमारी की वजह से अस्पताल में आखिरी सांस ले रहा है. मां सुजाता(काजोल) पल-पल अपने मरते बेटे को देखने के बावजूद मजबूती से इस सच्चाई का सामना कर रही है. जिंदगी के आखिरी क्षण में वो मां से इच्छा मृत्यु की मांग करता है. दरअसल वेंकी की चाहत है कि उसकी मौत के बाद बॉडी के सारे ऑर्गेन डोनेट कर दिए जाए, जो जरूरतमंदों के काम आ सके. हालांकि हमारे देश का कानून इसकी गवाही नहीं देता है. देश में इच्छा मृत्यु क्राइम माना जाता है. एक मां का अपने बेटे की आखिरी ख्वाहिश को पूरी करने की जद्दोजहद इस पूरी फिल्म का सार है.
डायरेक्शन
एक्ट्रेस रेवती ने इस फिल्म से लगभग 14 साल बाद डायरेक्शन में वापसी कर रही हैं. रेवती ने इस फिल्म के जरिए एक ऐसे यूनिवर्सल इमोशनल सब्जेक्ट का चयन किया है, जिससे हर कोई जुड़ा हुआ महसूस कर सके. एक सच्ची कहानी को पर्दे पर पूरी सेंसेटिविटी के साथ पेश करने का उनका यह सहासिक कदम सराहनीय है. जिस मिजाज की फिल्मों के लिए रेवती पहचानी जाती हैं, वो फ्लेवर भी इस फिल्म में दिखता है. फिल्म शुरू होते ही आपको एक इमोशनल राइड पर लेकर जाती है. वेंकी की कहानी से हो सकता है आप वाकिफ हों लेकिन पर्दे पर भी उसे देखना अच्छा लगता है. कई ऐसे सीन्स हैं, जिसे देखकर आप अपने आंसू नहीं रोक पाते हैं और कुछ ऐसे भी शॉट्स हैं जो जिंदगी जीने का फलसफा सिखा जाते हैं. क्रिटिक के नजरिये से कई लूप होल्स भी रहे हैं मसलन क्लीशे डायलॉग्स, वेंकी के लव पर ज्यादा फोकस, लेकिन कहानी इतनी मार्मिक है कि आप उसे अनदेखा कर जाते हैं.
फर्स्ट हाफ से लेकर क्लाइमैक्स तक आंसू नहीं थमते हैं. खासकर कोर्टरूम ड्रामा के दौरान वीडियो कॉल पर वैंकी का न बोलते हुए भी सबकुछ कह जाना, इस फिल्म का सबसे बेहतरीन शॉट जान पड़ता है. कल हो न हो, आनंद, गुजारिश जैसी फिल्में इस तरह की सब्जेक्ट पर बनी हैं लेकिन सलाम वेंकी एक असल जिंदगी के हीरो की बात करती है. खासकर मां-बेटे की बॉन्डिंग पर बनी यह फिल्म एक मां के दर्द को बयां तो जरूर करती है, साथ ही उसका सच्चाई को लेकर स्ट्रॉन्ग रवैया आपको एक सीख दे जाती है. वहीं हमारे देश में इच्छा मृत्यु(Euthanasia) को लेकर बने कानून और उस पर चल रहे डिबेट को भी बिना किसी पक्षपात के दिखाया गया है.

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