RRR-KGF 2 की सक्सेस पर Nawazuddin Siddiqui का कमेंट, पूछा- असली सिनेमा कहां है?
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नवाजुद्दीन सिद्दीकी का कहना है कि आज के समय में आ रहीं बड़े बजट की फिल्में शॉक और प्रशंसा की फीलिंग देती हैं. यह सभी विजुअल एक्सपीरियंस हैं, लेकिन इनमें असली सिनेमा कहां है. उन्होंने यह भी कहा कि उन्हें लगता है कि फिल्मों में अभी भी उथली चीजें दिखाई जाती हैं और इसमें कोई बदलाव नहीं आया है.
इन दिनों सिनेमाघरों में साउथ फिल्मों का बोलबाला है. एसएस राजामौली की RRR से लेकर यश की केजीएफ चैप्टर 2 तक बॉक्स ऑफिस पर धमाल मचा रही हैं. इन फिल्मों को देश और विदेश के दर्शक पसंद कर रहे हैं. लेकिन लगता है कि इन फिल्मों को नवाजुद्दीन सिद्दीकी ने खास पसंद नहीं किया है. नवाजुद्दीन ने अपने नए इंटरव्यू में हाल ही में रिलीज हुईं बड़े बजट की फिल्मों को लेकर तंज कस दिया है.
नवाजुद्दीन सिद्दीकी का कहना है कि ये फिल्में शॉक और प्रशंसा की फीलिंग देती हैं. यह सभी विजुअल एक्सपीरियंस हैं, लेकिन इनमें असली सिनेमा कहां है. उन्होंने यह भी कहा कि उन्हें लगता है कि फिल्मों में अभी भी उथली चीजें दिखाई जाती हैं और इसमें कोई बदलाव नहीं आया है. उन्होंने इस बारे में भी विचार किया कि अब बड़ी बजट की फिल्मों को थिएटर में जगह मिल रही है. ऐसे में क्या छोटे बजट की फिल्में थिएटर में जगह बना पाएंगी.
बॉलीवुड हंगामा को दिए इंटरव्यू में नवाजुद्दीन सिद्दीकी से पूछा गया कि क्या कमर्शियल सिनेमा में मेन लीड का कॉन्सेप्ट बदल रहा है. उन्होंने इस सवाल का जवाब ना में दिया. नवाज कहते हैं, ''मुझे नहीं लगता ये बदल रहा है. मैंने मंटो में भी लीड रोल निभाया था. लेकिन कितने लोग आए थे वो फिल्म देखने? मैंने सोचा था कि दो साल के पैनडेमिक के बाद लोगों ने वर्ल्ड सिनेमा तक देख लिया होगा और यहां बदलाव आया होगा. लेकिन जिस तरह की पिक्चर अभी हिट हो रही है, लगता है सलाहियत गई तेल लेने. यहां एंटरटेन करो और सतही लेवल पर एंटरटेन करो लोगों को.''
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नवाजुद्दीन ने कहा कि अच्छी और मॉडेस्ट छोटे बजट की फिल्मों को थिएटर में रिलीज कर पाना अब मुश्किल है. इसका कारण बड़े बजट की फिल्मों का थिएटर में लगना है. उन्होंने कहा, ''ऐसी फिल्में चमचमाती हुई होती हैं और दर्शकों में प्रशंसा की भावना पैदा करती हैं. इनमें प्लेन पानी में चलता है और मछलियां उड़ती हैं. यह विजुअल एक्सपीरियंस हैं, जो मुझे भी देखना पसंद है. लेकिन सिनेमा कहां है? जब आप CODA और किंग रिचर्ड जैसी फिल्मों को ओटीटी पर देखते हो, तो आपको लगता है कि शुक्र है भगवान का अच्छी फिल्में भी बन रही हैं. ओटीटी ने हमें बचा लिया है. मुझे लगता है ऐसी शॉकिंग फिल्में बच्चों को पसंद है. यंग माइंड प्रगतिशील होता है. हमें दो सालों के बाद प्रोग्रेसिव होना चाहिए था. लेकिन दुर्भाग्य से ऐसा नहीं हुआ.''
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