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3 बेटियों को लेकर जब घर छोड़कर निकली थीं मेरी मां, स्मृति ईरानी की यादें, सुनकर रो पड़े सब
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स्मृति ने अपने बचपन का वो किस्सा सुनाया, जिसने उनके जीवन को नई दिशा दे दी. एक इवेंट में स्मृति ने कहा- आज मुझे इस बातचीत में मेरी मां का एक किस्सा याद आ रहा है... इस पूरे वाकये को सुनकर वहां आए विदेशी मेहमान भी रो पड़े.
स्मृति ईरानी अक्सर ही सोशल मीडिया पर अपने वीडियोज शेयर करती हैं. कई अहम मुद्दों पर अपनी राय रखती नजर आती हैं. इस बार स्मृति ईरानी ने अपनी मां की कहानी सुनाई. साथ ही उस सीख के बारे में बताया जो उन्हें 41 की उम्र में आकर उनकी मां से मिली.
X पर स्मृति ने शेयर किया वीडियो स्मृति ने अपने बचपन का वो किस्सा सुनाया जो उन्हें आजतक याद है. एक इवेंट में स्मृति ने कहा- आज मुझे इस बातचीत में मेरी मां का एक किस्सा याद आ रहा है. आज मैं 48 साल की हूं. आने वाले मार्च के महीने में मैं 49 साल की हो जाऊंगी. पर जब मैं सात साल की थी तो एक दिन मुझे और मेरी दो छोटी बहनों को एक प्लेट में चावल और काली दाल खाने के लिए दी गई.
"हम तीनों एक कमरे में बैठकर दाल-चावल खा रहे थे कि अचानक से घर में एक इमरजेंसी आ गई. हम तीनों को ये नहीं पता ता कि आखिर ये इमरजेंसी कैसी है. इतनी देर में मां कमरे में आती हैं और पूछती हैं कि क्या तुम लोग खाना खा चुकी हो. हमने कहा हां. मैं सात साल की थी. मेरे से छोटी बहन पांच साल की थी और सबसे छोटी केवल दो साल की थी. क्योंकि मैं सबसे बड़ी थी तो मैंने मौका देखते ही मां से कहा कि हमें क्या करना है, क्योंकि आज संडे है. छुट्टी का दिन है. उन्होंने कहा- तुम्हारे बैग्स पैक्ड हो चुके हैं और तुम तीनों मेरे साथ जा रही हो."
"मुझे याद नहीं कि मैंने उनसे ये पूछा होगा कि आखिर हमारे बैग्स क्यों पैक्ड हैं? पर हां मुझे इतना जरूर याद है कि मैंने उन्हें एक रिक्शा में बैठे देखा था. उनके साथ सिलेंडर, 2 बेटियां और बैग्स थे. और वो मेरा इंतजार कर रही थीं. मैं घर के बाहर खड़ी थी और मैंने पूछा कि हम यहां से क्यों जा रहे हैं. मां ने कहा था कि जिंदगी में कुछ चीजें हैं जो मैंने तुम्हें नहीं बता सकती, बस इतना जरूर कह सकती हूं कि मैं इन्हें एक बेटा नहीं दे पाई. तो चलो यहां से. घर बनाते हैं. मैं घर के बाहर ही खड़ी थी और मां मुझे कह रही थीं कि चलो यहां से. तुम इस घर को क्यों देखे जा रही हो?"
"मैंने उनसे कहा कि एक दिन मैं इस घर को खरीदूंगी. मेरी मां उस समय 30 के करीब की होंगी. वो अपनी सात साल की बेटी को देख रही थी और सोच रही थी कि ये क्या कह रही है, जिसे ये तक नहीं पता कि आखिर इसका भविष्य क्या और कैसा होगा. मां ने मेरा हाथ पकड़ा और हम वहां से निकल गए. हम दिल्ली आए. मैंने डबल-ट्रिपल जॉब्स एक साथ कीं. और एक दिन मेरे पास इतना पैसा हुआ कि मैंने वो घर खरीदने का सोचा."
"मैं उस घर के बाहर खड़ी थी और मां को मैंने कॉल की. मैंने कहा कि 41 साल पहले हमने जो जगह छोड़ी थी, मैं वहां खड़ी हूं. मैं घर खरीदने के लिए यहां आई हूं. मां बुद्धिमान होती हैं और उम्र के साथ और ज्यादा होती हैं. उन्होंने मेरे से पूछा कि मुझे सच-सच बताओ, क्या तुम वाकई में उस घर को खरीदना चाहती हो. मैंने उस घर को देखा और ये भी सोचा कि मेरे वॉलेट में इतना पैसे हैं कि मैं इस घर को खरीद सकती हूं. पर मैंने उसे नहीं खरीदा. मां ने कहा कि दूसरों को माफ करना सीखो. अपने गुस्से को माफ करना सीखो. उन लोगों को माफ करना सीखो जिन्होंने तुम्हारे साथ गलत किया है. यही तुम्हारे खुद के लिए बेस्ट गिफ्ट होगा."
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