One Rank One Pension: केंद्र को बड़ी राहत, सुप्रीम कोर्ट ने 'वन रैंक वन पेंशन' मामले में बरकरार रखा सरकार का फैसला
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याचिकाकर्ता भारतीय भूतपूर्व सैनिक आंदोलन (आईईएसएम) ने 7 नवंबर 2015 के OROP नीति के फैसले को चुनौती दी थी. इसमें उन्होंने दलील दी थी कि यह फैसला मनमाना और दुर्भावनापूर्ण है क्योंकि यह वर्ग के भीतर वर्ग बनाता है और प्रभावी रूप से एक रैंक को अलग-अलग पेंशन देता है.
वन रैंक वन पेंशन (one rank one pension) मामले में सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को बड़ी राहत दी है. कोर्ट ने वन रैंक वन पेंशन मामले में केंद्र सरकार के फैसले को बरकरार रखा है. दरअसल, वन रैंक वन पेंशन नीति के खिलाफ इंडियन एक्स सर्विसमेन मूवमेंट ने याचिका दाखिल की थी. इस पर जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा, उसे OROP सिद्धांत और 7 नवंबर 2015 को जारी की गई अधिसूचना पर कोई संवैधानिक दोष नहीं मिला है.
क्या था आरोप याचिकाकर्ता भारतीय भूतपूर्व सैनिक आंदोलन (आईईएसएम) ने 7 नवंबर 2015 के OROP नीति के फैसले को चुनौती दी थी. इसमें उन्होंने दलील दी थी कि यह फैसला मनमाना और दुर्भावनापूर्ण है क्योंकि यह वर्ग के भीतर वर्ग बनाता है और प्रभावी रूप से एक रैंक को अलग-अलग पेंशन देता है.
केंद्र सरकार से पूछे थे ये सवाल
- OROP कैसे लागू किया जा रहा है? - OROP से कितने लोगों को लाभ हुआ है?
क्या है मामला?
केंद्र सरकार ने 7 नवंबर 2015 को वन रैंक वन पेंशन’ (OROP) योजना की अधिसूचना जारी की थी. इसमें कहा गया था कि योजना 1 जुलाई, 2014 से प्रभावी मानी जाएगी. इंडियन एक्स-सर्विसमैन मूवमेंट ने सुप्रीम कोर्ट में सेवानिवृत्त सैन्य कर्मियों की 5 साल में एक बार पेंशन की समीक्षा करने की सरकार की नीति को चुनौती दी है. वहीं केंद्र ने दायर हलफनामे में 2014 में संसद में वित्त मंत्री पी चिदंबरम के बयान पर विसंगति का आरोप लगाया है. केंद्र ने कहा कि चिदंबरम का 17 फरवरी 2014 का बयान तत्कालीन केंद्रीय कैबिनेट की सिफारिश के बिना दिया गया था. दूसरी ओर कैबिनेट सचिवालय ने 7 नवंबर, 2015 को भारत सरकार (कारोबार नियमावली) 1961 के नियम 12 के तहत प्रधानमंत्री की मंजूरी से अवगत कराया है.
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