NEET के लिए पकड़ा था 'कोटा का रास्ता', छोड़ा तो बन गईं हीरोइन, पढ़ें एक्ट्रेस की कहानी
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वेब सीरीज बंबई मेरी जान में हबीबा कादरी के किरदार में कृतिका कामरा जबरदस्त सुर्खियां बटोर रही हैं. कृतिका न केवल एक बेहतरीन अदाकारा हैं, बल्कि वो बचपन से काफी होशियार स्टूडेंट भी रही हैं. उन्होंने कोटा में कुछ समय के लिए मेडिकल की तैयारी भी की थी.
एक्ट्रेस कृतिका कामरा एक बेहतरीन अदाकारा के साथ-साथ अपने स्कूल कॉलेज दिनों में एक अच्छी स्टूडेंट रही हैं. इन दिनों बंबई मेरी जान में अपने गैंगस्टर के रोल से चर्चा में आईं कृतिका ने 12वीं में लगभग 96 प्रर्सेंट स्कोर किया था. आगे मेडिकल की पढ़ाई के लिए वो राजस्थान के कोटा शहर भी गई थीं.
बता दें, पिछले कुछ सालों में कोटा में पढ़ाई कर रहे स्टूडेंट्स के बीच तनाव का माहौल ज्यादा देखने को मिला है. पढ़ाई का प्रेशर इस कदर स्टूडेंट पर सवार है कि वो इसे झेल नहीं पा रहे हैं. स्थिती चिंताजनक है क्योंकि इस साल में अब तक 27 स्टूडेंट ने सुसाइड किया है. खुद कोटा में पढ़ाई कर चुकीं कृतिका ने इसे भयावह बताया है.
आजतक डॉट इन से एक्सक्लूसिव बातचीत पर कृतिका अपने कोटा के दिनों के क्लासेस और प्रेशर पर बात करती हैं. कृतिका बताती हैं, 'मेरा एक्स्पीरियंस कोटा में बहुत कम समय का रहा है. मैंने अपने बोर्ड में 96 पर्सेंट स्कोर किए थे. मुझे मेडिकल करना था और उसी की तैयारी के लिए मैं कोटा गई हुई थी. हालांकि एक से डेढ़ महीने के बाद मुझे अपने कारणों की वजह से लगा कि कुछ और करना है. उस दौरान वहां रहकर यह अहसास हुआ कि बहुत अकेलापन है. बच्चे देशभर के अलग-अलग शहरों से आते हैं. पहले तो उनका एंट्रेंस एग्जाम होता है, वो इतना टफ होता है. आप उसकी तैयारी में रहते हैं. वहां एजुकेशन का बहुत ही इंफॉर्मल तरीका रहा है. स्कूल और कॉलेजों की बात करूं, तो वहां पढ़ाई के अलावा बाकि एक्टिविटीज भी होती है... कम्यूनिटी होती है..एक लाइफ होती है.. लेकिन कोटा में लाइफ नहीं है. ये पूरी तरह से मेरी राय है. मैं जानती हूं कि वहां कितनी पढ़ाई और मेहनत लगती है, उसकी रिस्पेक्ट भी है. लेकिन मुझे वहां बहुत अकेलापन महसूस होता था.'
कृतिका आगे कहती हैं, 'आप बस वहां लगातार एग्जाम ही एग्जाम दिए जा रहे हैं, इतना प्रेशर, इतना कंपीटिशन.. वो दुनिया आप पर दवाब बनाए जा रहा है. आप उस दुनिया में ही उलझ कर रह गए हैं. परिवार से दूर, दोस्तों से दूर.. आपके पास वक्त नहीं होता है. कॉलेज का माहौल नहीं है, एक कोचिंग सेंटर पर जाकर आप एक आइसोलेट हो जाते हैं. यह बहुत दुखद है कि हमारे देश की एजुकेशन सिस्टम इस तरह से प्रेशर बनाती है. खासकर वहां तो ब्राइट स्टूडेंट्स जाते हैं, उनका ये हाल देखकर बुरा लगता है.'
कृतिका कहती हैं,'मैं इस बात में बहुत लकी रही हूं कि मेरे पैरेंट्स ने मुझपर किसी तरह का दवाब नहीं बनाया है. मेरे हर फैसले को सपोर्ट किया है. यह बहुत बड़ी बात है क्योंकि कई परिवारों में ऐसा नहीं होता है. मैंने कोटा छोड़ दिया और दिल्ली कुछ और कोर्स करने चली गई. वो बिलकुल रॉक सॉलीड खड़े रहे हैं. मैं किसी समृद्ध परिवार से भी नहीं हूं. मिडिल क्लास ही गोल रहे हैं. चूंकि उन्होंने मुझे ये आजादी दी और मेरे लिए खड़े रहे हैं, शायद यही कारण है कि मेरे अंदर रिस्पॉन्सिबिलिटी आती गई है. मैं वही कहना चाहूंगी कि इतना ही विश्वास अगर पैरेंट्स अपने बच्चों पर दिखाएं, तो बहुत ही सेंसिटिव और स्मार्ट होगा. देखो, हर बच्चे को अपने पैरेंट्स का ही वैलिडेशन तो चाहिए होता है. मैं चाहूंगी कि पैरेंट्स मोटिवेट जरूर करें, लेकिन दवाब न बनाएं. मैं आज पूरे आत्मविश्वास के साथ दुनिया का सामना कर पाती हूं क्योंकि मेरे पैरेंट्स मुझपर ट्रस्ट करते हैं.'