Nagchandreshwar temple: साल में सिर्फ 24 घंटे के लिए खुलता है नागचंद्रेश्वर मंदिर, नेपाल से आई ये प्रतिमा बेहद खास
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Nagchandreshwar temple ujjain: सावन मास की शुक्ल पंचमी तिथि को नाग पंचमी का त्योहार मनाया जाता है. इस दिन भगवान शिव के आभूषण नाग देव की पूजा की जाती है. महाकाल की नगरी उज्जैन को मंदिरों का शहर कहा जाता है. इस शहर की गली में एक मंदिर है. लेकिन नागचंद्रेश्वर मंदिर की आभा बेहद निराली है. इस मंदिर की सबसे खास बात ये है कि मंदिर के कपाट सिर्फ नाग पंचमी के दिन ही खुलते हैं.
सावन मास की शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को नाग पंचमी (Nag Panchami 2022) का त्योहार मनाया जाता है. तिथि के मुताबिक इस बार नाग पंचमी 2 अगस्त को पड़ रही है. नाग पंचमी के दिन स्त्रियां नाग देवता की पूजा करती हैं और सांपों को दूध पिलाया जाता है. सनातन धर्म में सर्प को पूज्यनीय माना गया है. नाग पंचमी के दिन नागों की पूजा की जाती है और उन्हें गाय के दूध से स्नान कराया जाता है. माना जाता है कि जो लोग नाग पंचमी के दिन नाग देवता के साथ ही भगवान शिव की पूजा और रुद्राभिषेक करते हैं, उनके जीवन से कालसर्प दोष खत्म हो जाता है. साथ ही राहु और केतु की अशुभता भी दूर होती है.
महाकाल की नगरी उज्जैन को मंदिरों का शहर कहा जाता है. इस शहर की हर गली में एक ना एक मंदिर जरूर है. उज्जैन में महाकालेश्वर मंदिर के तीसरे भाग में नागचंद्रेश्वर मंदिर है. नागचंद्रेश्वर मंदिर का अपना अलग महत्व है. इस मंदिर की सबसे खास बात ये है कि मंदिर के कपाट साल में सिर्फ एक बार नाग पंचमी के दिन 24 घंटे के लिए ही खुलते हैं. नागचंद्रेश्वर मंदिर की क्या खास बात है यह भी जान लेते हैं.
नेपाल से लाई गई थी प्रतिमा
भगवान नागचंद्रेश्वर की मूर्ति काफी पुरानी है और इसे नेपाल से लाया गया था. नागचंद्रेश्वर मंदिर में जो अद्भुत प्रतिमा विराजमान है उसके बारे में कहा जाता है कि वह 11वीं शताब्दी की है. इस प्रतिमा में शिव-पार्वती अपने पूरे परिवार के साथ आसन पर बैठे हुए हैं और उनके ऊपर सांप फल फैलाकर बैठा हुआ है. बताया जाता है कि इस प्रतिमा को नेपाल से लाया गया था. उज्जैन के अलावा कहीं भी ऐसी प्रतिमा नहीं है. यह दुनिया भर का एकमात्र मंदिर है जिसमें भगवान शिव अपने परिवार के साथ सांपों की शय्या पर विराजमान हैं.
त्रिकाल पूजा की है परंपरा
मान्याताओं के मुताबिक, भगवान नागचंद्रेश्वर की त्रिकाल पूजा की परंपरा है. त्रिकाल पूजा का मतलब तीन अलग-अलग समय पर पूजा. पहली पूजा मध्यरात्रि में महानिर्वाणी होती है, दूसरी पूजा नागपंचमी के दिन दोपहर में शासन द्वारा की जाती है और तीसरी पूजा नागपंचमी की शाम को भगवान महाकाल की पूजा के बाद मंदिर समिति करती है. इसके बाद रात 12 बजे वापिस से एक साल के लिए बंद हो जाएंगे.
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