Good Luck Review: 75 साल की महिला के प्रेग्नेंट होने की फनी कहानी, हंसाने के साथ इमोशनल भी करेगी
AajTak
अब 'बधाई हो वाले कांड' को फॉलो करते हुए डायरेक्टर प्रखर श्रीवास्तव और एक्टर बृजेन्द्र काला मिलकर फिल्म 'गुड लक' लेकर आए हैं. ये फिल्म एक 75 साल की महिला अंगूरी पर आधारित है, जो 75 की उम्र में प्रेग्नेंट हो जाती है. फिल्म मजेदार है और इमोशन्स से भरी कहानी बयां करती है.
साल 2018 में जब आयुष्मान खुराना की फिल्म 'बधाई हो' आई तो हम सभी ने उसे खूब एन्जॉय किया था. अधेड़ उम्र में प्रेग्नेंट होने वाली महिला के रोल को नीना गुप्ता ने काफी बढ़िया तरीके से निभाया था. उनका साथ गजराज राव ने पूरी तरह से दिया. अब 'बधाई हो वाले कांड' को फॉलो करते हुए डायरेक्टर प्रखर श्रीवास्तव और एक्टर बृजेन्द्र काला मिलकर फिल्म 'गुड लक' लेकर आए हैं. ये फिल्म एक मजेदार और इमोशन्स से भरी कहानी बयां करती है.
क्या है फिल्म की कहानी?
'गुड लक' की कहानी उज्जैन में रहने वाली 75 साल की अंगूरी (मालती माथुर) पर आधारित है. पति की मौत के बाद अंगूरी अकेली रह गई है. उनके घर में उसका बेटा पुष्पेंद्र उर्फ पप्पी (बृजेन्द्र काला) है, जो चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहा है. पोता ब्रह्मदत्त (आशुतोष उपाध्याय) स्टार यूट्यूबर बनने के सपने देखता है और बहू शर्मीली (मनीषा चित्रोदे) अपने फोन और मां से बातचीत में मग्न रहती है. छोटे से परिवार में रहते हुए भी अंगूरी अपने आप को अकेला महसूस करती है. उसके घरवाले उसे नजरंदाज करते हैं और पड़ोसी उसके पास आकर बात करने से कतराते हैं.
लेकिन ये सब उस दिन बदल जाता है जब पप्पी को पता चलता है कि उसकी 75 साल की पोपली मां, 'मां बनने वाली है'. डॉक्टर पप्पी को बताता है कि अंगूरी प्रेग्नेंट है. ऐसे में पप्पी की दुनिया इधर की उधर हो जाती है. अपने चुनाव की रेस में पप्पी जनसंख्या कम करने का वादा करता रहता है और यहां उसी की मां इतनी बूढ़ी उम्र में बच्चा जनने वाली है. इसके बाद पूरे परिवार में उथल-पुथल मच जाती है, जो देखने में मजेदार भी है और थोड़ी काफी हद तक इमोशनल करने वाली भी.
डायरेक्शन
डायरेक्टर प्रखर श्रीवास्तव अपने आप में अलग कहानी लेकर आए हैं. ये आज की भागदौड़ भरी और सोशल मीडिया की दुनिया में बुजुर्गों के नजरंदाज होने पर रोशनी डालती है. हालांकि इसका स्क्रीनप्ले इसके साथ पूरा न्याय नहीं कर पाया. फिल्म की एडिटिंग भी बेहतर हो सकती थी. मूवी के क्लाइमैक्स सीन में और कुछ बीच के सीन्स में किरदार अलग-अलग चीजों पर बात करते हैं, लेकिन फिल्म में उन सीन्स को दिखाया नहीं गया है. ऐसे में आपको उनसे कनेक्ट करने में दिक्कत होती है. पिक्चर का फर्स्ट हाफ ठीक है, दूसरा हाफ आपको ज्यादा इमोशनल करता है. फिल्म को देखते हुए आपको समझ आता है कि ये छोटे बजट में बनाई गई है. लेकिन इसके जरिए जो मैसेज दिया गया है, फिल्म उसे दर्शकों तक जरूर पहुंचा देती है.