
Bhool Bhulaiyaa 2 review: फील वही लेकिन कहानी नई है इस भूल भुलैया की...
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Bhool Bhulaiyaa 2 review: कार्तिक आर्यन की फिल्म भूल-भुलैया 2 आपको पुरानी फिल्म की याद तो जरूर दिलाएगी. लेकिन कहानी का नयापन इसके विविधरंगी किरदार आपको भूल भुलैया की अलग दुनिया में लेकर जाते हैं.
2007 में रिलीज हुई प्रियदर्शन की साइकोलॉजिकल थ्रिलर भूल भुलैया अपने जमाने से कहीं ज्यादा आगे की फिल्म मानी जाती है. बॉलीवुड हॉरर कॉमेडी जॉनर से उस वक्त शायद उतना वाकिफ नहीं था. यही वजह है कि नयेपन के इस प्रयोग ने इतिहास रच दिया और आज भूल-भुलैया कल्ट फिल्मों की लिस्ट में शुमार है. लगभग 15 साल बाद फिल्म की फ्रेंचाइजी भूल-भुलैया 2 फैंस के बीच एक नई कहानी, नए डायरेक्टर और नई स्टारकास्ट के साथ आ चुकी है. हां, इस फिल्म को पुराने से कंपेयर करना सही नहीं होगा. फिल्म की फील वही लेकिन कहानी पूरी तरह नई है.
कहानी
फिल्म की शुरुआत होती है रूहान रंधावा (कार्तिक आर्यन) और रीत (कियारा आडवाणी) की एक्सीडेंटल दोस्ती से, रुहान जहां मस्तमौला और ट्रैवलर हैं, तो वहीं रीत राजस्थान छोड़ मेडिकल की पढ़ाई करने मनाली गई हुई हैं. हालांकि रीत अब अपने घर वापस जा रही है, जहां उनकी शादी की तैयारी चल रही है. मनाली में रुहान से मिली रीत उसके कहने पर बस मिस कर देती है, जो आगे चलकर खाई में गिर जाती है. ऐसे में परिवार के पास रीत के मौत की खबर पहुंच चुकी है. जब रीत अपनी सलामती की न्यूज के लिए घर पर कॉल करती है, तो उसे पता चलता है कि उसकी बहन उसी के मंगेतर से प्यार में है. अब रीत अपनी मौत की अफवाह को बनाए रखने का फैसला लेती है. यहीं से कहानी आगे बढ़ती है. रीत की मदद करने रूह उसके साथ राजस्थान जाता है, जहां उसे पता चलता है कि हवेली के एक कमरे में मंजुलिका की आत्मा को पिछले 18 साल से कैद कर रखा गया है. कई तरह के ट्विस्ट व टर्न और सस्पेंस लिए फिल्म आपको थ्रिल जर्नी पर लेकर जाती है. जिसे जानने व समझने के लिए आपको थिएटर जाना होगा.
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डायरेक्शन और टेक्निकल कॉमिडी फिल्म मेकिंग के बादशाह अनीस बज्मी ने पहली बार हॉरर कॉमिडी जॉनर का प्रयास किया है और वे इस प्रयास में काफी हद तक सफल भी साबित हुए हैं. फिल्म के कई सीन्स आपको हंसते-हंसते लोट-पोट कर देते हैं, तो कुछ सीन्स में आप डर कर आंख भींच लेने पर मजबूर भी हो जाते हैं. कॉमेडी और हॉरर का जबरदस्त मिश्रण आपको एंटरटेनमेंट के एक खूबसूरत राइड पर लेकर जाता है. फिल्म के वन लाइनर्स और उम्दा डायलॉग्स इसकी जान हैं, जिसके लिए राइटर आकाश कौशिक और फरहाद शामजी की दाद देनी होगी. बंटी नेगी की एडिटिंग की बात करें, तो फिल्म का फर्स्ट हाफ आपको पूरी तरह बांधे रखता है, वहीं सेकेंड हाफ के एंडिंग पार्ट में कहानी थोड़ी खींची हुई नजर आती है. कुछ जगहों पर लॉजिक्स भी ढूंढने लगते हैं, जहां एडिटिंग में कसाव की कमी महसूस होती है. मनु आनंद की सिनेमैटोग्राफी कमाल की रही. फिल्म हर लहजे में लार्जर दैन लाइफ दिखाई देती है. हवेली के वाइड शॉट्स की बात हो या कमरे का छोटा सा कोना, हर एंगल को खूबसूरती से फिल्माया गया है. संदीप शिरोडकर का बैकग्राउंड स्कोर कहानी में एनर्जी डालता है. प्रीतम की म्यूजिक को अगर पुराने फिल्म से कंपेयर किया जाए, तो वे खुद के ही बनाए बेंच मार्क तक नहीं पहुंच पाए हैं.
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