
Azaad Review: कमजोर कहानी से फीकी पड़ी अमन देवगन-राशा थडानी की डेब्यू फिल्म, अजय देवगन ने छोड़ी छाप
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फिल्ममेकर अभिषेक कपूर अपने करियर में कई फिल्में बना चुके हैं जिसमें से उनकी दो फिल्में 'रॉक ऑन' और 'काई पो छे' लोगों को बेहद पसंद आई थी. अब वो नई फिल्म 'आजाद' लेकर आ गए हैं जिससे अमन देवगन और राशा थडानी डेब्यू कर रहे हैं. कैसी है फिल्म, पढ़िए हमारा रिव्यू.
हम सभी ने अभी तक बॉलीवुड में ना जाने कितनी ही अंडरडॉग्स वाली फिल्में देखी होंगी. अक्सर उन सभी फिल्मों का प्लॉट बड़ा साधारण सा होता है. जिसमें एक किरदार अपनी इज्जत पाने के लिए पूरे समाज से लड़कर जीत हासिल करने की कोशिश करता है और अंत में जीत पा लेता है. उन फिल्मों को अलग-अलग तरीके से कई बार हमारे सामने पेश किया गया. लेकिन उनमें से कुछ ही बॉक्स ऑफिस पर चल पाईं. आज के समय में बॉक्स ऑफिस पर फिल्मों का चलना भी एक बड़ी बात बन गई है.
ऑडियंस थिएटर में सिर्फ उन्हीं फिल्मों को देखने जाती है जिनके अंदर मास-एक्शन और दमदार डायलॉग्स की भरमार हो. पिछले काफी समय से सिर्फ मसाला एंटरटेनर फिल्में ही बॉक्स ऑफिस पर राज कर रही हैं. लेकिन इस बीच फिल्ममेकर अभिषेक कपूर एक अनोखी कहानी हम सभी के बीच लेकर आए हैं जिसमें एक घोड़ा फिल्म का हीरो है. उनकी फिल्म 'आजाद' जिससे दो नए एक्टर्स अमन देवगन और राशा थडानी अपना डेब्यू कर रहे हैं आज थिएटर्स में रिलीज हो गई है. कैसी है फिल्म, पढ़िए हमारा ये रिव्यू.
क्या है 'आजाद' की कहानी
फिल्म की कहानी साल 1920 की है जब भारत के लोग अपनी आजादी की लड़ाई अंग्रेजों से लड़ रहे थे. वहीं मध्य भारत में एक लड़का गोविंद (अमन देवगन) है जो अपने पिता के साथ शाही परिवार का अस्तबल संभालता है. उसकी मुलाकात जानकी (राशा थडानी) नाम की लड़की से होती है जो उसी शाही परिवार की बेटी है. इस कहानी में एक डाकू भी है जिसका नाम विक्रम सिंह (अजय देवगन) है. वो अंग्रेजों के जुल्म से गरीबों को बचाकर खुद को बागी बुलाता है. उसके पास एक बड़ा खूबसूरत सा घोड़ा भी है जिसका नाम आजाद है. एक बार गोविंद से एक ऐसी गलती हो जाती है जिसके कारण उसे अपने गांव से भागना पड़ता है.
भागते-भागते वो कहीं दूर पहुंच जाता है और उसकी मुलाकात आजाद से हो जाती है. वो उसके मोह में डाकू विक्रम सिंह का साथी भी बन जाता है. गोविंद के मन में आजाद की सवारी करने की चाह उठती है. लेकिन आजाद अपने सरदार के अलावा किसी और इंसान को अपने आसपास भटकने भी नहीं देता. इतने में गांव वालों पर भी मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ता है. उन्हें कई गुना कर्ज अंग्रेजों को चुकाना है जिसे अगर उन्होंने नहीं चुकाया तो उन्हें भारी नुकसान भरना पडे़गा. अब क्या गोविंद आजाद की सवारी कर पाता है और अगर हां तो क्या वो गांववालों को उस मुसीबत से निकाल पाता है या नहीं, ये तो आप जब फिल्म देखेंगे आप खुद जान जाएंगे.
फीका है स्क्रीनप्ले, कहानी में नहीं दम

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