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होस्नी मुबारक, कर्नल गद्दाफी और अब बशर अल असद... जैस्मिन क्रांति के 13 साल में मिट गया इन तानाशाहों का राज
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बशर अल असद के देश छोड़ने के बाद सीरियाई प्रधानमंत्री ने विद्रोहियों को सत्ता सौंपने का प्रस्ताव दिया है. PM मोहम्मद गाजी अल जलाली ने एक वीडियो में कहा कि वो देश में ही रहेंगे और जिसे भी सीरिया के लोग चुनेंगे, उसके साथ मिलकर काम करेंगे.
साल 2011 अरब जगत के देशों के लिए भारी उथल-पुथल भरा था. ट्यूनीशिया में एक सब्जी बेचने वाले के आत्मदाह से भड़की आग में इस क्षेत्र के कई देश झुलस गए. आलम ये था कि ट्यूनीशिया से निकली विद्रोह की ये चिंगारी मिस्र, लीबिया, यमन और सीरिया कई देशों तक फैली. विद्रोह की इस चिंगारी को जैस्मीन क्रांति या फिर अरब स्प्रिंग कहा गया. इस क्रांति ने कई तानाशाहों की चूल्हें हिला दी और उन्हें गद्दी से उतार फेंका.
इस फेहरिस्त में पहला नाम मिस्र के तानाशाह होस्नी मुबारक का है. होस्नी मुबारक 1981 में अनवर सदत की हत्या के बाद मिस्र के राष्ट्रपति बने थे. वह 1981 से 2011 तक मिस्र में एकछत्र राज करते रहे. लेकिन 2011 में ट्यूनीशिया से निकली विद्रोह की चिंगारी में उन्हें गद्दी से उतरना पड़ा.
जब होस्नी मुबारक को छोड़नी पड़ी गद्दी
जनवरी 2011 में मिस्र की राजधानी काहिरा के तहरीर स्क्वायर में हजारों की संख्या में प्रदर्शनकारी इकट्ठा हुए, जिन्होंने राजनीतिक सुधारों और मुबारक के इस्तीफे की मांग की. सोशल मीडिया और इंटरनेट के जरिए आंदोलन को व्यापक समर्थन मिला, जिसने सरकार के दमन के प्रयासों को चुनौती दी.
होस्नी मुबारक सरकार ने शुरुआत में इन विरोधों को दबाने की कोशिश की लेकिन जनता के भारी समर्थन और वैश्विक दबाव के सामने उनकी रणनीति असफल रही. पुलिस और प्रदर्शनकारियों के बीच झड़प के बावजूद प्रदर्शनकारियों ने अपनी मांगों को जारी रखा. लेकिन 18 दिनों तक हुए हिंसक प्रदर्शन के बाद होस्नी मुबारक को अपना पद छोड़ना पड़ा, और सत्ता सेना के हाथ में चली गई. यह पहली बार था जब मिडिल ईस्ट में सोशल मीडिया से शुरू होकर सड़क तक पहुंचे एक आंदोलन ने किसी निरंकुश शासक को सत्ता से उखाड़ फेंका था. इस प्रोटेस्ट में 239 प्रदर्शनकारियों की मौत हो गई थी.
क्रूर कर्नल गद्दाफी का खौफनाक अंत
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