हरियाणा में दलित वोटरों ने ऐसे खींच ली कांग्रेस के नीचे से जमीन | Opinion
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haryana election results: हरियाणा चुनाव में दलितों ने भी जाटों की ही तरह कांग्रेस को जोरदार झटका दिया है. कांग्रेस की हार में हुड्डा-सैलजा तकरार की भी बड़ी भूमिका लगती है, और लगता है राहुल गांधी के आरक्षण पर बयान को जैसे बीएसपी नेताओं ने समझाया, हरियाणा के दलितों ने मान भी लिया.
हरियाणा में भूपिंदर सिंह हुड्डा के समर्थकों के बीच सत्ता में वापसी का जो माहौल बना था, एग्जिट पोल ने भी बरकार रखा - लेकिन चुनाव नतीजों ने तो कांग्रेस नेतृत्व तक के सपनों को भी चकनाचूर कर दिया है.
जरा सोचिये, अशोक तंवर ने आखिर क्या सोच कर घर वापसी का फैसला किया होगा. कांग्रेस छोड़कर पाला बदलते बदलते वो बीजेपी में पहुंच चुके थे. एक दिन दोपहर में बीजेपी के लिए वोट मांग रहे थे और शाम तक वो कांग्रेस में पहुंच गये.
कल्पना कीजिये अशोक तंवर पर क्या बीत रही होगी. क्या अशोक तंवर की तकलीफ भूपेंद्र सिंह हुड्डा या राहुल गांधी से कम होगी? कुमारी सैलजा की तो तकलीफ जरा अगल किस्म की है, हो सकता है, फिलहाल वो थोड़ी राहत भी महसूस कर रही हों - और हो सकता है अशोक तंवर भी कुमारी सैलजा वाली फीलिंग लाकर खुद को तसल्ली दे रहे हों.
कुमारी सैलजा और अशोक तंवर दोनो का कॉमन दुख है, और एक ही दुश्मन है हुड्डा परिवार. 2014 में कांग्रेस की हार के बाद राहुल गांधी ने अशोक तंवर को हरियाणा कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया था, लेकिन 2019 आते आते भूपेंद्र सिंह हुड्डा अध्यक्ष तो नहीं बन पाये, लेकिन पार्टी पर काबिज तो हो ही गये - लेकिन हार की हैट्रिक लगा चुके हुड्डा को भी अब आलाकमान के किसी भी फैसले को फेस करने के लिए पहले से ही तैयार हो जाना चाहिये.
अगर हरियाणा में कांग्रेस को जीत हासिल हुई होती तो क्रेडिट अपनेआप राहुल गांधी को मिल जाता, लेकिन अब तो हार का ठीकरा सिर्फ और सिर्फ हुड्डा परिवार पर ही मढ़ा जाएगा. ताकत तो जीत से ही मिलती है, हार तो हर किसी को कमजोर कर देती है.
बहरहाल, मुद्दे की बात ये है कि कैसे हरियाणा में दलित समुदाय ने कांग्रेस के पैरों तले की जमीन खींच ली है, और क्यों?
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