सेंटर छोड़ रहा 18 मॉन्यूमेंट्स का जिम्मा, क्या है इसका मतलब, कैसे कोई स्मारक अपना महत्व खो देता है?
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आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (ASI) 18 स्मारकों को डीलिस्ट करने जा रहा है, इनमें से कई मिसिंग भी हैं. इन जगहों का जिम्मा अब ASI के पास नहीं रहेगा. उसका मानना है कि ये स्मारक अपना राष्ट्रीय महत्व खो चुके. जानिए, किस आधार पर ऐसा कहा गया, और संरक्षण मिलने पर क्या होता है.
ASI ने मार्च के दूसरे हफ्ते में नोटिफिकेशन जारी किया कि वो 18 स्मारकों और प्राचीन स्थलों के रखरखाव की जिम्मेदारी छोड़ रहा है. अब तक इसकी लिस्ट में साढ़े 3 हजार से ज्यादा मॉन्यूमेंट्स हैं, जिन्हें वो संरक्षण देता आया है. अब इसमें से कुछ डीलिस्ट हो रहे हैं. इनमें नौ स्मारक उत्तर प्रदेश, और दो-दो मॉन्यूमेंट्स दिल्ली, राजस्थान और हरियाणा में हैं. सूची में मध्य प्रदेश, उत्तराखंड और अरुणाचल प्रदेश के भी प्राचीन स्थलों का जिक्र है. सूची निकालते हुए केंद्र ने लोगों से अपनी आपत्ति या सुझाव दो महीनों के भीतर देने को कहा है.
क्या अर्थ है राष्ट्रीय महत्व के होने का ASI यूनियन मिनिस्ट्री ऑफ कल्चर के तहत काम करता है. ये पुरातात्विक महत्व के स्थलों और स्मारकों को राष्ट्रीय महत्व का घोषित कर सकता है. जो जगहें इसमें शामिल हो जाती हैं, उनके मेंटेनेंस की पूरी-पूरी जिम्मेदारी सेंटर की होती है. यहां तक कि अगर कोई किसी भी तरह से इन जगहों को नुकसान पहुंचाने की कोशिश करे, तो उसपर बाकायदा कानूनी कार्रवाई भी हो सकती है. ASI की संरक्षित साइट या उसके आसपास, जितने में उसके संरक्षण को खतरा हो, कोई कंस्ट्रक्शन कार्य नहीं किया जा सकता.
क्या होता है डीलिस्टिंग के बाद
राष्ट्रीय महत्व की सूची से हटने के बाद उस जगह के रखरखाव और सुरक्षा की जिम्मेदारी ASI की नहीं रहती. स्मारक के आसपास कोई भी कंस्ट्रक्शन काम बिना बाधा चल सकता है. फिलहाल सेंटर के पास कुल 3,693 मॉन्यूमेंट्स हैं, जिनमें से 18 घटने जा रहे हैं. इसमें दिल्ली की दो जगहें- कोटला मुबारकपुर का इंचला वाली गुमटी और बाराखंबा कब्रगाह शामिल हैं. वहीं उत्तर प्रदेश से सबसे ज्यादा स्मारक हैं.
कैसे किसी जगह का राष्ट्रीय महत्व खत्म एंशिएंट मॉन्यूमेंट्स एंड आर्कियोलॉजिकल साइट्स एंड रिमेन्स एक्ट 1958 में इसका प्रावधान है. इसके सेक्शन 35 के मुताबिक, ये तय करने का जिम्मा पूरी तरह से केंद्र के पास होता है. अगर उसकी राय में कोई प्राचीन या ऐतिहासिक स्मारक या साइट राष्ट्रीय महत्व का न रहे, तो वो इसपर आधिकारिक गजेट में नोटिफिकेशन देती है, जैसा अभी किया गया. 8 मार्च को नोटिफिकेशन निकला. इसके बाद दो महीने का समय है, जिसमें कोई केंद्र के फैसले पर एतराज जता सकता है, या कोई सुझाव भी दे सकता है.
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