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संत कबीर ने दुनिया को पढ़ाया एकता का पाठ, 624वें प्रकट दिवस पर पढ़ें उनकी जीवनी
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कबीर साहेब का प्राकट्य सन 1398 (संवत 1455), ज्येष्ठ मास की पूर्णिमा को ब्रह्ममूहर्त के समय कमल के पुष्प पर हुआ था. कबीर जी के संबंध में भ्रांति हैं कि उन्होंने एक विधवा ब्राह्मणी के गर्भ से जन्म लिया था. लेकिन यह असत्य है.
भारत के इतिहास को तीन कालखंडों में विभाजित किया गया है जैसे आदिकाल, मध्यकाल और आधुनिक काल. मध्यकाल के भक्तियुग के प्रसिद्ध संत जिन्हें लोग संत कबीर के नाम से जानते हैं तथा जिनके दोहे आज भी साहित्य की अनमोल धरोहर हैं. संत कबीर ही वास्तव में पूर्ण परमेश्वर हैं जो आज से लगभग 624 वर्ष पूर्व अपने तत्वज्ञान का प्रचार करके गए. कबीर साहेब के प्रिय शिष्य आदरणीय धर्मदास जी ने कबीर साहेब जी की अनमोल वाणियों का संकलन कबीर सागर, कबीर साखी, आदि में किया. इसके अतिरिक्त कबीर साहेब द्वारा की गई सभी लीलाओं का स्पष्ट वर्णन हमारे वेदों में वर्णित है. कबीर साहेब का प्राकट्य सन 1398 (संवत 1455), ज्येष्ठ मास की पूर्णिमा को ब्रह्ममूहर्त के समय कमल के पुष्प पर हुआ था. कबीर जी के संबंध में भ्रांति हैं कि उन्होंने एक विधवा ब्राह्मणी के गर्भ से जन्म लिया था. लेकिन यह असत्य है. वेदों में वर्णित विधि के अनुसार परमेश्वर कबीर साहेब हल्के तेजपुंज का शरीर धारण करके सशरीर सतलोक से आए और कमल के पुष्प पर अवतरित हुए. इस घटना के प्रत्यक्ष दृष्टा ऋषि अष्टानंद जी थे.More Related News