वो मिलिटरी कमांडर जिसने देश के सरेंडर करने के 29 साल बाद तक जंग जारी रखी, उसे पता नहीं था कि जंग बंद हो चुकी है!
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एक ऐसी वॉर स्टोरी जिसकी मिसाल पूरी दुनिया में नहीं मिलती. एक ऐसा वॉर हीरो जिसका देश जंग हार चुका था लेकिन उसे सूचना नहीं मिली और 29 साल बाद भी वह अपने कमांडर का आदेश मानता रहा और दुश्मन पर वज्र बनकर टूटता रहा. वीरता और साहस की ऐसी कहानी जिसने इस मिलिटरी कमांडर को जीते जी किवदंती बना दिया. जो अपने देश वालों के लिए नायक बन गया. आइए जानते हैं एक अनोखे सैनिक की अद्भुत कहानी.
अंग्रेजी की एक कहावत है- Struggle and Shine... मुश्किल वक्त में जो लोग साहस का परिचय देते हैं वही इतिहास रचते हैं. जंग के मैदान में टिके रहने के लिए सिपाही की ताकत हथियार और रणनीति तो होती ही है लेकिन जंग जीतने का रास्ता साहस से ही तय होता है. हम आज एक ऐसे मिलिटरी ऑफिसर की कहानी आपको सुनाने जा रहे हैं जो जंग खत्म होने के बाद भी 29 साल तक मोर्चे पर डटा रहा और दुश्मन को नुकसान पहुंचाता रहा, जो अपने साहस की बदौलत जीते जी किवदंती बन गया. हम कहानी सुनाने जा रहे हैं हीरू ओनीडा की जिनकी कहानी दुनिया की सबसे अनोखी वॉर स्टोरी है.
...साल 1944 का था, दूसरा विश्वयुद्ध अपने परिणाम की ओर बढ़ रहा था. पर्ल हार्बर अटैक के बाद अमेरिका जापान को सबक सिखाने की तैयारी में था. 26 दिसंबर 1944 को जापानी इम्पीरियल आर्मी के सेकेंड लेफ्टिनेंट हीरू ओनीडा को फिलीपींस में लुबांग के छोटे से द्वीप पर भेजा गया. उसे आदेश दिया गया था कि जितना भी संभव हो सके अमेरिकी सेना के मूवमेंट को रोके. उसे हर कीमत पर अपनी जंग जारी रखनी थी और कभी सरेंडर नहीं करना था. इसी आदेश के साथ एक आत्मघाती मिशन पर हीरू ओनीडा अपनी टीम के साथ निकले. अमेरिकी सेना ने पूरी ताकत से हमला किया और फरवरी 1945 में लुबांग द्वीप पर कब्जा कर लिया. बहुत से जापानी सैनिक या तो मारे गए या उन्हें सरेंडर करना पड़ा.
लेकिन सेकेंड लेफ्टिनेंट हीरू ओनीडा और उनके तीन साथी किसी तरह जंगल में छिपे रह गए. उन्होंने वहीं से अमेरिकी फौज और उनका साथ दे रहे स्थानीय सैनिक और लोगों के खिलाफ गुरिल्ला जंग छेड़ दी. वे उनकी सप्लाई लाइन पर हमला करते, भटके सैनिकों और सैन्य टुकड़ियों पर हमला करते, और जिस तरीके से भी बन पड़ता अमेरिकी सेना के मूवमेंट को बाधित करते. उसी साल अगस्त 1945 में अमेरिका ने जापान के दो शहरों हिरोशिमा और नागासाकी पर परमाणु बम गिराया और भारी तबाही के बाद जापान को सरेंडर करना पड़ा. दूसरे विश्व युद्ध की समाप्ति का ऐलान हो गया.
हालांकि, अभी भी हजारों जापानी सैनिक प्रशांत महासागर के द्वीपों में बिखरे पड़े थे और ज्यादात्तर हीरू ओनीडा की तरह जंगलों में छिपे थे. उन्हें इस बात की जानकारी नहीं थी कि युद्ध समाप्त हो चुका है. उस समय संचार के ऐसे साधन भी नहीं थे कि सभी सैनिकों को सूचना मिल पाती. ये छिपे हुए सिपाही पहले की तरह ही हमला और लूटपाट करते रहे. इन हमलों को रोकने के लिए अमेरिका की फौज ने सरेंडर कर चुके जापानी फौज और सरकार के साथ मिलकर फिलीपींस के जंगलों में हजारों पर्चियां गिराईं, जिसमें ऐलान किया गया था कि युद्ध खत्म हो चुका है और अब हरेक सैनिक को अपने घर वापस लौटना चाहिए.
दूसरे लोगों की तरह, हीरू ओनीडा और उनके आदमियों ने भी इन पर्चियों को पढ़ा लेकिन तय किया कि ये पर्चियां झूठी हैं और गुरिल्ला लड़ाकों को जंगल से बाहर निकालने की अमेरिकी फौज की चाल है इसलिए इस पर भरोसा नहीं करना चाहिए. हीरू ओनीडा ने वे पर्चियां जला दीं और छिप कर हमला जारी रखा.
पांच साल बीत गए, पर्चियां बंटनी बंद हो गईं और ज्यादातर अमेरिकी फौज अपने देश वापस लौट गईं. लुबांग की स्थानीय जनता भी अपने काम, खेती और मछली पालन में लग गई लेकिन हीरू ओनीडा की टीम जंग के मोड में बनी रही और जो मिलता उसपर हमले करते रही. परेशान होकर फिलीपींस की सरकार ने नई पर्चियां छपवाकर उन्हें जंगल में गिरवाया. जिसमें लिखी थीं- 'बाहर आ जाओ, युद्ध खत्म हो गया है, तुम लोग हार गए हो'. हीरू ओनीडा और उनके लोगों ने इन पर्चियों पर भी भरोसा नहीं किया और झूठ मानकर हमले जारी रखा.
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