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लखीमपुर का टाइगर और बहराइच के भेड़िए... आदमखोरों के सामने पिंजरा-ड्रोन सब फेल, गांव-गांव पसरा खौफ
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यूपी के दो जिलों में लोग अपने छोटे बच्चों और बुजुर्गों की रखवाली करने को मजूबर हैं. क्योंकि बहराइच में भेड़िए और लखीमपुर खीरी में बाघ इन्हें ही अपना शिकार बना रहे हैं. आइए आपको बताते हैं यूपी के इन दोनों जिलों की खौफनाक कहानी. जिसे जानकर आपके रोंगटे खड़े हो जाएंगे.
उत्तर प्रदेश के दो जिलों और उनके आस-पास बाघ और भेड़ियों का आतंक चरम पर है. दोनों इलाकों में आदम खोर भेड़िए और बाघ कई लोगों की जान ले चुके हैं. वहां लोग इस कदर खौफजदा हैं कि वे रात होने से पहले ही अपने घरों में कैद हो जाते हैं. खासकर वे अपने छोटे बच्चों और बुजुर्गों की रखवाली करने को मजूबर हैं. क्योंकि बहराइच में भेड़िए और लखीमपुर खीरी में बाघ इन्हें ही अपना शिकार बना रहे हैं. आइए आपको बताते हैं यूपी के इन दोनों जिलों की खौफनाक कहानी. जिसे जानकर आपके रोंगटे खड़े हो जाएंगे.
लखीमपुर का टाइगर कभी वो रात के अंधेरे में दिख रहा है, कभी दिन के उजाले में और कभी उसके गुजर जाने के बाद उसके पगमार्क यानी पैरों के निशान डरा रहे हैं. अगर वो कोई टाइगर रिजर्व या उसका हिस्सा होता, तो शायद लोग उसे देखकर रोमांचित होते, लेकिन चूंकि वो एक गांव है, इंसानी आबादी वाला इलाका है और रह रह वो इंसानों को ही अपना निवाला बना रहा है. कैमरे में कैद उसकी तस्वीरों ने लोगों को ख़ौफ़ से भर दिया है. हम बात कर रहे हैं उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी ज़िले के गांव इमलिया की. जिसके इर्द-गिर्द एक टाइगर इन दिनों गन्ने के खेतों में छुपा बैठा है और एक-एक कर गांव वालों को अपना निशाना बना रहा है. महज महीने भर के अंदर ही उस बाघ ने चार जिंदगियों को लील लिया है.
बहराइच के भेड़िए अब आइए लखीमपुर से 130 किलोमीटर दूर यूपी के ही एक और जिले बहराइच की बात करते हैं. जहां जंगल से निकली मौत रह रह कर अलग-अलग घरों की खुशियां उजाड़ रही है. लखीमपुर में बाघ इंसानों के लिए काल बना है, तो बहराइच में भेड़िये परिवार के परिवार तबाह कर रहे हैं. पिछले डेढ़ महीनों से इस जिले के 35 गांवों में भेड़ियों के हमले से ही 9 बच्चों समेत दस लोगों की मौत हो चुकी है. ये सिलसिला लगातार जारी है और ऐसा कब तक चलेगा ये भी कोई नहीं जानता. लोग सहमे हुए हैं. भेड़ियों का झुंड दबे पांव गांवों में आता है और घर में सो रहे नन्हें बच्चों को अपने जबड़े में दबा कर भाग निकलता है.
बहराइच की इस दर्द भरी कहानी की एक एक डिटेल आपको बताएंगे, साथ ही ये भी बताएंगे कि भेड़ियों के इस खौफ से निजात पाने के लिए शासन प्रशासन और वन विभाग क्या कह रहा है, लेकिन आइए पहले आपको लखीमपुर की पूरी हक़ीकत बताते हैं.
लखीमपुर के आदमखोर टाइगर की कहानी हाल ही में उस बाघ की जो लेटेस्ट तस्वीरें सामने आई हैं, वो उसी इमलिया गांव के इर्द-गिर्द की हैं, जहां अब से चंद रोज़ पहले उस बाघ ने एक किसान की जान ले ली थी. बाघ ने किसान पर तब हमला किया था, जब वो गन्ने के खेतों में काम कर रहा था. चूंकि सिर्फ अगस्त के महीने में ही बाघ के हमले से चौथी मौत थी, इस चौथी और आखिरी मौत के बाद गुस्साए गांव वालों ने रोड जाम कर शासन-प्रशासन का ध्यान खींचने की कोशिश की. इस कोशिश का असर भी हुआ और वन विभाग की टीमों ने बाघ की तलाश में इस इलाके में डेरा डाल दिया. पिंजरा लगाया गया. पिंजरे के इर्द-गिर्द झाड़ियां डाल कर उसे नैचुरल लुक देने की कोशिश की गई. अंदर के चारे के तौर पर एक बकरी भी बांध दी गई और फिर जगह-जगह कैमरे लगा कर वन विभाग के लोग बाघ की मूवमेंट के साथ-साथ बाघ को भी कैप्चर करने की कोशिश करने लगे, लेकिन वो कहते हैं कि हाथ तो आया, पर मुंह को न लगा.
इंसानों के बिछाए जाल में नहीं फंसा बाघ वन विभाग के साथ कुछ ऐसा ही हुआ. बाघ इस इलाके में आया तो जरूर, पिंजरे के पास से भी गुजरा, लेकिन इंसानों के खून का स्वाद चख चुका ये बाघ इंसानों के बिछाए इस जाल में न फंसा. उसकी तस्वीरें तो अलग-अलग कैमरों में कैद हो गईं, पग मार्क भी नजर आ गया, लेकिन बाघ पिंजरे में नहीं फंसा. बाघ की लास्ट मूवमेट बंजरिया गांव के पास सराय नदी के किनारे लगाए गए एक पिंजरे में पहली सितंबर की सुबह साढे चार बजे एक कैमरे में कैद हुई थी.
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