
रेवंत रेड्डी सरकार पर सुप्रीम कोर्ट ने दिखाई सख्ती, हैदराबाद की हरियाली बचाने की कोशिश
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बीते ढाई दशकों में विभिन्न सरकारों ने ग्रेटर हैदराबाद के पश्चिमी हिस्से को कंक्रीट के जंगल में तब्दील कर दिया है, जहां प्राकृतिक चट्टानों की जगह ऊंची-ऊंची इमारतें खड़ी हैं. सवाल यह उठता है कि जब शहर के दक्षिणी हिस्से में बंजर ज़मीन उपलब्ध है, तो हैदराबाद की ‘सिलिकॉन वैली’ सिर्फ़ इसी क्षेत्र में क्यों बनाई जाए?
अगर लियो टॉल्स्टॉय की प्रसिद्ध कहानी ‘एक आदमी को कितनी ज़मीन चाहिए?’ का सवाल तेलंगाना सरकार से पूछा जाता, तो शायद उसका जवाब होता- '400 एकड़'. हैदराबाद के कांचा गाचीबोवली इलाके में बनने वाले IT पार्क को लेकर सरकार का यही रवैया रहा है. सरकार का दावा है कि इस प्रोजेक्ट में 50,000 करोड़ का निवेश आएगा और 5 लाख नौकरियां पैदा होंगी. मुख्यमंत्री रेवंत रेड्डी के अनुसार, यह विकास तेलंगाना के लिए 'ऑक्सीजन' जैसा है, लेकिन विडंबना यह है कि उन्होंने हैदराबाद के हरे-भरे पेड़ों को जेसीबी मशीनों से काटकर हटा देने की कोशिश की है. यह एक तरह से प्रकृति पर किसी सर्जिकल स्ट्राइक जैसा है.
सुप्रीम कोर्ट ने दिखाई सख्ती
कागजों पर यह सरकारी ज़मीन है, जैसा कि तेलंगाना हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट भी कह चुके हैं. सरकार के समर्थकों का तर्क है कि इस ज़मीन पर कोई भी फैसला लेना सरकार का अधिकार है. वन विभाग और इस इलाके से सटा हैदराबाद विश्वविद्यालय दोनों का इस मामले में कोई कानूनी हक नहीं है, ऐसा सरकार का पक्ष है.
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लेकिन कानूनी तौर पर सरकार की स्थिति बेहद कमज़ोर है. सुप्रीम कोर्ट ने 4 मार्च को सभी राज्यों को निर्देश दिया था कि वे छह महीनों में विशेषज्ञ समिति बनाकर वन भूमि और उससे मिलती-जुलती भूमि की पहचान करें. साथ ही तब तक भारत सरकार या कोई भी राज्य ऐसा कोई कदम नहीं उठाएंगे जिससे वन क्षेत्र में कटौती हो. पर्यावरणविदों का कहना है कि कांचा गाचीबोवली का यह इलाका भले ही राजस्व रिकॉर्ड में वन भूमि न हो, लेकिन प्राकृतिक रूप से यह एक प्राचीन जंगल जैसा है.
जंगल में जमकर चली जेसीबी

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