
मुर्शिदाबाद हिंसा मे ममता सरकार का झुकाव क्या पीड़ितों के बजाय हमलावरों की ओर है?
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आगरा में शनिवार को राणा सांगा के खिलाफ बयान के विरोध में करणी सेना के विरोध में करीब 50 से 60 हजार राजपूत इकट्टा होते हैं. कुछ के हाथों में हथियार भी थे. पर भीड़ शांतिपूर्ण ही रही. क्योंकि यूपी सरकार नहीं चाहती थी कि प्रदेश में दंगा हो. पर मुर्शिदाबाद में जुमे की नमाज के बाद भीड़ को नियंत्रित करने का पश्चिम बंगाल सरकार का इरादा शायद यूपी जैसा नहीं था.
पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद जिले में वक्फ (संशोधन) अधिनियम के खिलाफ विरोध प्रदर्शन के दौरान जमकर हिंसा हुई है. करीब 3 लोगों के मारे जाने की खबर मिल रही है. हिंसा के बीच ही जान बचाकर करीब 500 हिंदुओं ने मालदा जैसे दूसरे इलाकों में शरण ली है. बहुत से और लोग यहां से पलायन के मूड में हैं. शायद इसलिए कहा जा रहा है कि मुर्शिदाबाद में हुई घटना को दंगा कहना या लिखना सरासर गलत है. क्योंकि दंगा शब्द का अर्थ यह है कि जब दो समुदायों के बीच नफरती हिंसा हो. पर यहां तो मामला ही एकतरफा दिख रहा है. साफ दिखता है कि ये वक्फ बिल विरोधियों की प्रायोजित हिंसा है. जब प्रदेश की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी खुद कह रही हैं कि पश्चिम बंगाल सरकार राज्य में वक्फ संशोधन अधिनियम को वो लागू नहीं करेंगी तो फिर हिंसक प्रदर्शन की जरूरत क्यों पड़ गई? कहीं ऐसा तो नहीं हुआ कि सीएम के बयान के बाद हिंसा करने वालों को नैतिक समर्थन मिल गया और वे अपना काम करने के लिए सड़कों पर आ गए. और उन्होंने निर्दोष स्थानीय हिंदू रहवासियों को निशाना बना दिया. बीजेपी का कहना है कि ममता सरकार ने टीचर्स भर्ती घोटाले से ध्यान भटकाने के लिए ऐसा किया है. आइये देखते हैं कि क्या वास्तव में मुर्शिदाबाद हिंसा की दोषी ममता सरकार है?
1- यूपी-बिहार-दिल्ली-महाराष्ट्र कहीं भी नहीं हुआ दंगा, केवल मुर्शिदाबाद में क्यों भड़के
देश भर में दंगों का इतिहास रहा है. बंगाल ही नहीं उत्तर प्रदेश-बिहार, दिल्ली और महाराष्ट्र जैसे राज्यों में भी दंगे होते रहे हैं. इन राज्यों में भी कई जिलें ऐसे हैं जहां मुस्लिम आबादी 50 प्रतिशत से अधिक है. पश्चिमी यूपी और बिहार के सीमावर्ती जिलों में मुस्लिम समुदाय मजबूत भी है. पर फिर भी देश के अन्य राज्यों से वक्फ बिल के खिलाफ माहौल बनते नहीं देखा गया. तेलंगाना , कर्नाटक, केरल आदि में थोड़ा बहुत विरोध हुआ पर हिंसा की नौबत नहीं आई. मतलब साफ है कि कहीं न कहीं बंगाल के बलवाइयों को ऐसा लग रहा था कि सरकार उनके साथ है. वैसे भी मुर्शिदाबाद के तीनों सांसद टीएमसी के हैं. जाहिर है सवाल तो उठेंगे ही. उत्तर प्रदेश के आगरा में करीब 50 हजार से 60 हजार राजपूत कर्णी सेना के विरोध प्रदर्शन एकत्र होते हैं. उनके हाथों में हथियार लहरा रहे थे. पर हिंसा की एक भी खबर नहीं आई. सब कुछ शांतिपूर्ण तरीके से निबट गया . पर ऐसा पश्चिम बंगाल में नहीं हुआ. मुर्शिदाबाद में जुमे की नमाज करके पब्लिक सड़कों पर जुटी और हमला करना शुरू कर दिया. मतलब साफ है कि वेस्ट बंगाल सरकार ऐसा चाहती थी इसलिए दंगाइयों को रोका नहीं गया. यूपी सरकार नहीं चाहती थी कि दंगा भड़के इसलिए 60 हजार राजपूतों को कंट्रोल कर लिया गया.
2- वक्फ बोर्ड संशोधन के खिलाफ ममता की बयनाबाजी ने दंगाइयों का मन बढ़ाया
इसमें कोई दो राय नहीं हो सकती कि वक्फ बोर्ड पर ममता बनर्जी के बयान के चलते दंगाइयों की हौसलाअफजाई हुई. ममता बनर्जी ने कहा था कि 'बंगाल में ऐसा कुछ भी नहीं होगा'. शायद इसका अर्थ यह निकाला गया कि आप बंगाल में कुछ भी करो आपका कुछ नहीं होगा. ममता बनर्जी ने कहा था कि 'मैं जानती हूं कि आप वक्फ संशोधन कानून बनने से आहत हैं. भरोसा रखिए, बंगाल में कुछ भी ऐसा नहीं होगा जिससे समाज को बांटा जा सके. आप एक संदेश दीजिए कि हम सभी को एक साथ मिलकर रहना है.'
मुर्शिदाबाद जिले में वक्फ (संशोधन) कानून को लेकर हुई हिंसा की ओर इशारा करते हुए उन्होंने कहा, 'बांग्लादेश से सटे सीमावर्ती इलाकों की स्थिति देखिए. यह (वक्फ विधेयक) अभी पारित नहीं होना चाहिए था. बंगाल में 33 प्रतिशत अल्पसंख्यक हैं. मैं उनके साथ क्या करूं?' जब तक दीदी हैं, आपकी संपत्ति सुरक्षित है' . जाहिर है कि इस तरह की बातें जब सीएम खुद करेंगी तो दंगाइयों का मन बढ़ेगा ही.कल्पना करिए कि यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ अगर बंगाल के सीएम होते क्या बयान देते? और पुलिस क्या कर रही होती अब तक. अगर यूपी की तर्ज पर बंगाल में भी दंगाइयों के नाम पोस्टरों में लिखे गए होते और उनके घरों पर बुलडोजरों की कार्रवाई भी हो रही होती.

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