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'राम नाम' और 'दंगा'... वोटिंग से पहले योगी आदित्यनाथ और ममता बनर्जी की जुबानी रस्साकशी में कौन जीतेगा?
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ममता बनर्जी न तो पश्चिम बंगाल से बाहर निकली हैं और न ही योगी आदित्यनाथ अभी उनके इलाके में दाखिल हुए हैं, लेकिन दोनों के चुनाव कैंपेन और भाषणों में 'राम नाम' और 'दंगा' कॉमन रूप से छाया हुआ देखा जा सकता है - क्या लोकसभा चुनाव ऐसे ही मुद्दों तक सिमट कर रह जाएगा?
राम नाम की लूट है लूट सके तो लूट... भक्ति भाव की बातें अपनी जगह होंगी, लेकिन चुनाव मैदान का नजारा तो ऐसा ही देखने को मिल रहा है - यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी के चुनाव कैंपेन इसकी मिसाल हैं.
ये तो पहले से ही मालूम है कि अयोध्या में राम मंदिर निर्माण का मुद्दा बीजेपी लोकसभा चुनाव में जोर शोर से उठाएगी, लेकिन विपक्ष भी मददगार बन जाएगा ऐसा नहीं लग रहा था. निश्चित रूप से ममता बनर्जी अपने राजनीतिक हितों के मद्देनजर राम का नाम ले रही हैं, लेकिन चर्चा में तो ला ही रही हैं.
राम मंदिर बनने का सबसे ज्यादा राजनीतिक प्रभाव तो उत्तर प्रदेश में होगा, ऐसा पहले से ही माना जा रहा है, और बीजेपी के स्टार प्रचारक के रूप में योगी आदित्यनाथ देश भर में अलग जगाने लगे हैं. ताजातरीन उदाहरण योगी आदित्यनाथ की राजस्थान में हुई चुनावी रैलियां हैं.
योगी आदित्यनाथ ने राम मंदिर के बहाने कांग्रेस को टारगेट किया है, जबकि पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी राम के नाम पर बीजेपी पर दंगे कराने का इल्जाम लगा रही हैं. राजस्थान और पश्चिम बंगाल अलग अलग छोर पर हैं, लेकिन दो अलग अलग पॉलिटिकल लाइन वाले नेताओं के भाषण में कॉमन बातें राम मंदिर मुद्दे के अखिल भारतीय विस्तार की तरफ इशारा कर रहे हैं - भले ही दोनों की पेशगी अपने अपने हिसाब से ही क्यों न हो.
ये भी पता चला है कि बीजेपी एक बार फिर से पूरे देश को राममय बनाने की कोशिश में जुट गई है. इसी साल 22 जनवरी को अयोध्या में राम मंदिर के उद्घाटन के मौके पर बीजेपी के मनमाफिक माहौल तो बन ही गया था - और करीब करीब वैसी ही तैयारी अब 17 अप्रैल के लिए हो रही है.
असल में 17 अप्रैल को रामनवमी है. और राम मंदिर के लिए तो ये पहली रामनवमी भी है. मौका तो है ही, दस्तूर भी निभाए ही जाने चाहिये, लेकिन मान कर चलना चाहिये सब कुछ पॉलिटिकल ही होगा - और ये भी सुनने में आ रहा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी इस मौके पर अयोध्या का दौरा कर सकते हैं.
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महाकुंभ में गंगा के जल की गुणवत्ता को लेकर सियासी बहस छिड़ी गई है. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने विधानसभा में कहा कि गंगा का पानी नहाने और पीने योग्य है, जबकि समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव इसे लेकर सरकार पर निशाना साध रहे हैं. इस मुद्दे पर ब्रजेश पाठक और गजेंद्र शेखावत ने भी अखिलेश यादव को घेरा है.
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इंडिया टुडे ग्रुप के डेटा इंटेलिजेंस यूनिट ने अमेरिकी फंडिंग पर एक बड़ा खुलासा किया है. 2001 से 2024 के बीच भारत को 2.9 बिलियन डॉलर की फंडिंग मिली, जिसमें से 1.3 बिलियन डॉलर पिछले 10 वर्षों में आए. चुनावी प्रक्रिया को मजबूत करने के लिए 2013 से 2018 के बीच 4,84,000 डॉलर खर्च किए गए. यह जानकारी अमेरिकी सरकार की आधिकारिक वेबसाइट से ली गई है. हालांकि, डोनाल्ड ट्रंप द्वारा दावा किए गए 23 मिलियन डॉलर के आंकड़े की पुष्टि नहीं हो पाई है.
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साल 2001 से 2024 के बीच, USAID ने भारत को कुल 2.9 बिलियन डॉलर दिए हैं. यह सालाना औसतन 119 मिलियन डॉलर है. इस राशि का 1.3 बिलियन डॉलर या 44.4 फीसदी भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाली राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन सरकार (2014-2024) के दौरान दिया गया था. कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार (2004-2013) के दौरान, भारत को 1.2 बिलियन डॉलर या 41.3 प्रतिशत अनुदान मिला.
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विष्णु शंकर जैन, 38 वर्षीय वकील, जो 14 वर्षों से हिंदू धार्मिक स्थलों के लिए कानूनी लड़ाई लड़ रहे हैं. श्रीराम जन्मभूमि, कृष्ण जन्मभूमि, ज्ञानवापी और शाही जामा मस्जिद जैसे प्रमुख मामलों में शामिल. अपने पिता हरिशंकर जैन के साथ मिलकर 100 से अधिक धार्मिक मामलों में निःशुल्क पैरवी की है. 2010 में कानून की डिग्री प्राप्त करने के बाद से, वे हिंदू पक्ष के प्रमुख वकील के रूप में उभरे हैं.
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महाराष्ट्र की महायुति सरकार में सबकुछ ठीक नहीं चल रहा. इसके संकेत उपमुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के हालिया बयानों से मिलते हैं. सूत्रों की मानें तो शिंदे और मुख्यमंत्री फडणवीस के बीच कोल्ड वॉर की स्थिति है. इस बीच शुक्रवार को एकनाथ शिंदे ने एक बार फिर दो दिन पहले दिया अपना 'टांगा पलटने' वाला बयान दोहराया.