यूएई ने अहम बैठक में सऊदी अरब को क्यों नहीं बुलाया, उठ रहे कई सवाल
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अमीराती क्षेत्रीय नेतृत्व को प्रदर्शित करने के लिए बुधवार को यूएई ने एक बैठक बुलाई थी. खाड़ी सहयोग परिषद (जीसीसी) के सदस्य देशों में सऊदी अरब और कुवैत ही ऐसे देश थे जो इस बैठक में उपस्थिति नहीं हुए. सऊदी अरब और कुवैत का इस बैठक में शामिल नहीं होना यह दर्शाता है कि गंभीर नकदी संकट झेल रहे मिस्र को ये दोनों देश और अधिक मौद्रिक सहायता प्रदान करने से हिचक रहे हों. वहीं, कुछ टिप्पणीकारों का मानना है कि यह बैठक गल्फ देशों में क्षेत्रीय नेतृत्व को लेकर सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात के बीच चल रहे संघर्ष को दर्शाता है.
यूएई के राष्ट्रपति मोहम्मद बिन जायेद अल नाहयान ने मध्य-पूर्व में स्थिरता और समृद्धि पर चर्चा के लिए बुधवार को एक बैठक बुलाई थी. यूएई सरकार की ओर से जारी बयान के अनुसार, इस बैठक में बहरीन, ओमान, कतर, मिस्र और जॉर्डन शामिल हुए.
खाड़ी सहयोग परिषद (जीसीसी) के सदस्य देशों में सऊदी अरब और कुवैत ही ऐसे देश थे जो इस बैठक में उपस्थित नहीं हुए. इस बैठक में सऊदी अरब और कुवैत की गैर-मौजूदगी को लेकर कई विश्लेषक सवाल खड़े कर रहे हैं और इसके अलग-अलग मायने निकाल रहे हैं.
यूएई सरकार की ओर से जारी किए गए बयान के मुताबिक, इस बैठक में कई क्षेत्रीय, राजनीतिक, आर्थिक और सुरक्षा चुनौतियों से जुड़े मुद्दों पर चर्चा हुई. हालांकि, सबसे ज्यादा फोकस आर्थिक सहयोग बढ़ाने पर रहा.
खासकर, मिस्र और जॉर्डन ने आर्थिक सहयोग को और मजबूत करने पर जोर दिया.
हालांकि, मिस्र और जॉर्डन दोनों देश जीसीसी (गल्फ कोऑपरेशन काउंसिल) के सदस्य नहीं हैं. लेकिन गंभीर आर्थिक संकट से उबरने के लिए खाड़ी देशों से अतिरिक्त कर्ज की मांग कर रहे हैं.
अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) ने दिसंबर में कहा था कि आईएमएफ की ओर से मिस्र को मिलने वाला नया कर्ज जीसीसी से मिली वित्तीय मदद पर निर्भर करेगा. आईएमएफ ने जॉर्डन की मदद के लिए भी अन्य देशों को आगे आने के लिए कहा था.
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