ब्रिटिश PM ऋषि सुनक की कलाई पर हमेशा रहता है कलावा, जानें वैदिक परंपरा में इसके मायने
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मौली, रक्षासूत्र या कलावा बांधना वैदिक परंपरा का हिस्सा रहा है. इसे कभी यज्ञ से पहले तो कभी संकल्प या रक्षा सूत्र के रूप में बांधा जाता रहा है. आइए जानते हैं कि आखिर ये कलावा होता क्या है और इससे बांधने की परंपरा व नियम क्या हैं.
भारतीय मूल के प्रधानमंत्री ऋषि सुनक पिछले हफ्ते ही G20 शिखर सम्मेलन में हिस्सा लेने के लिए भारत आए थे. इस दौरान पूरी दुनिया ने उनका हिंदू अवतार देखा. ऋषि सुनक अपनी पत्नी अक्षता मूर्ति के साथ दिल्ली के अक्षरधाम मंदिर पहुंचे और देवी-देवताओं की विधिवत पूजा की. आपने गौर किया होगा कि ऋषि सुनके दाएं हाथ पर हमेशा एक कलावा भी बंधा रहता है. क्या आप जानते हैं कि हिंदू धर्म में कलावा क्यों बांधा जाता है और इसके क्या मायने होते हैं.
आपने अक्सर लोगों को पूजा या पर्व-त्योहारों पर कलाई पर कलावा बांधते देखा होगा. मौली, रक्षासूत्र या कलावा बांधना वैदिक परंपरा का हिस्सा रहा है. इसे कभी यज्ञ से पहले तो कभी संकल्प या रक्षा सूत्र के रूप में बांधा जाता रहा है. लेकिन इसे बांधने के कुछ नियम भी होते हैं.
कलावा तीन धागों से मिलकर बना होता है. इसमें लाल पीले और हरे या सफेद रंग के धागे होते हैं. आमतौर पर यह सूत से तैयार होता है. ये तीन धागे त्रिशक्तियों (ब्रह्मा, विष्णु और महेश) के प्रतीक माने जाते हैं. असुरों के राजा बलि की अमरता के लिए भगवान वामन ने उनकी कलाई पर कलावा बांधा था. देवी लक्ष्मी ने राजा बलि के हाथों में अपने पति की रक्षा के लिए यह सूत्र बांधा था.
कहां-कहां बांधते हैं कलावा? मौली को कलाई, कमर या गलें में बांधा जा सकता है. इसे मन्नत के लिए किसी देवी-देवता के स्थान पर भी बांधा जाता है. मन्नत पूरी हो जाने पर इसे खोलने की भी परंपरा है. इस मौली से घर में लाई गई नई वस्तु को भी बांधा जाता है.
कलावा धारण करने के लाभ ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, कलावा तीनों धातुओं (कफ, वात, पित्त) को संतुलित करती है. कलाई पर इसे कुछ विशेष मंत्रों के साथ बांधा जाता है. यह धारण करने वाले की रक्षा भी करता है. हर तरह के कलावे के लिए अलग तरह का मंत्र होता है.
कब बांधा जाता है कलावा? पर्व-त्योहार, मंगलवार और शनिवार का दिन कलावा बांधने के लिए शुभ माना जाता है. मंगलवार और शनिवार को पुरानी मौली उतारकर नई मौली बांधना उचित माना गया है. हर साल संक्रांति, यज्ञ की शुरुआत या किसी इच्छित कार्य के प्रारंभ में मौली बांधने की परंपरा है. मांगलिक कार्य, विवाह आदि संस्कारों के दौरान भी कलावा बांधा जाता है.
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