पाकिस्तान में पहली बार हिंदू महिला लड़ेगी इलेक्शन, जानिए माइनॉरिटी के लिए वहां क्या हैं नियम
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पाकिस्तान में फरवरी में आम चुनाव होंगे. इसमें पहली बार किसी अल्पसंख्यक महिला ने सामान्य सीट से अपना नामांकन भरा है. खैबर पख्तूनख्वा के बुनेर जिले से नामांकन दाखिल करने के बाद से डॉ. सवीरा प्रकाश चर्चा में हैं. हालांकि कई सवाल भी उठ रहे हैं, जैसे अल्पसंख्यकों पर हिंसा के लिए कुख्यात इस देश में क्या हिंदू महिला जीत सकती है? माइनॉरिटी को पाकिस्तानी राजनीति में कितना स्पेस मिलता है?
आने वाली 8 फरवरी को पाकिस्तान में आम चुनाव होंगे. इस बीच निर्वाचन आयोग ने आदेश दिया कि राजनीतिक दल सामान्य सीटों से कम से कम 5 प्रतिशत महिला उम्मीदवार भी लाएं. इसके तुरंत बाद ही पाकिस्तान पीपल्स पार्टी ने वो एलान किया, जिसका चर्चा लगातार हो रही है. उसने हिंदूअल्पसंख्यक समुदाय की डॉ. सवीरा प्रकाश को खड़ा कर दिया, वो भी खैबर पख्तूनख्वा से, जहां से माइनॉरिटी पर हिंसा की खबरें अक्सर आती रहती हैं.
आजाद पाकिस्तान में 20 प्रतिशत से ज्यादा अल्पसंख्यक थे, जिनकी आबादी अब घटकर करीब 3 प्रतिशत रह गई है. इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि वहां माइनॉरिटी किन हालातों में रह रही होगी. हालांकि पाकिस्तान दावा करता है कि उसके यहां सबको बराबरी मिली हुई है.
यहां अल्पसंख्यकों में हिंदुओं के अलावा सिख और क्रिश्चियन्स भी शामिल हैं. इन सबके लिए राजनीति में अलग प्रावधान और आरक्षण है. साल 2018 में जब पाकिस्तान में चुनाव हुए थे तो माइनोरिटी वोटरों की संख्या 30% तक बढ़ गई थी, लेकिन इससे खास फर्क नहीं पड़ा, बल्कि हिंसा की खबरें आती ही रहीं.
राजनीति में भी वो अल्पसंख्यकों का हक बनाए रखने की बात करता है. लेकिन उसके ही कुछ नियम इस क्लेम की पोल खोल देते हैं. मसलन, अहमदिया मुसलमान अगर खुद को वोटर भी मानना चाहें तो ऐसा मुमकिन नहीं. इसके लिए उन्हें इलेक्टोरल कॉलम में अपना धर्म बताना होगा. चूंकि उनके धार्मिक यकीन बाकी मुस्लिमों से अलग हैं, इसलिए उन्हें मुसलमान ही नहीं माना जाता. अगर वे खुद को नॉन-मुस्लिम कहें तो ये भी उनके मजहब के खिलाफ जाता है.
ऐसे में 5 लाख से ज्यादा अहमदिया आबादी को वोट करने का भी अधिकार नहीं. वो स्थानीय या नेशनल इलेक्शन का हिस्सा नहीं बन सकते हैं.
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