पहले तेजस, फिर सूरज... कूनो में एक हफ्ते के अंदर 2 चीतों की मौत कैसे? अफ्रीकी एक्सपर्ट ने बताई ये वजह
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पिछले साल 17 सितंबर को पीएम मोदी की मौजूदगी में आठ नामीबियाई चीतों (पांच मादा और तीन नर) को कूनो नेशनल पार्क में संगरोध बाड़ों में छोड़ा गया था. इस साल फरवरी में दक्षिण अफ्रीका से 12 और चीते कूनो नेशनल पार्क पहुंचे थे. चार शावकों के जन्म के बाद चीतों की कुल संख्या 24 हो गई थी, लेकिन आठ मौतों के बाद यह संख्या घटकर 16 रह गई है.
मध्य प्रदेश के कूनो नेशनल पार्क में शुक्रवार को दो और चीतों की मौत हो गई. इन दोनों चीतों की मौत के साथ ही अब तक कुल 5 चीतों और 3 शावकों की मौत हो चुकी है. ये सभी चीते पिछले साल दक्षिण अफ्रिका से भारत लाए गए थे. विपक्षी नेता चीतों की मौत को लेकर केंद्र सरकार को घेर रहे हैं. मंगलवार को तेजस और शुक्रवार को सूरज चीते की मौत की वजह सामने आ गई है.
न्यूज एजेंसी के मुताबिक चीता एक्सर्ट का कहना है कि दोनों नर चीतों की मौत सेप्टीसीमिया के कारण हुई है. दरअसल, सेप्टीसीमिया एक गंभीर ब्लड इंफेक्शन है और इससे खून में जहर बनने लगता है. दावा है कि चीतों की गर्दन में जो रेडियो कॉलर पहनाया गया है, उसके कारण गर्दन के आसपास नमी बने रहने के कारण ये चीते बैक्टीरिया की चपेट में आ गए.
दक्षिण अफ्रीका के चीता एक्सपर्ट का दावा
दक्षिण अफ्रीकी चीता मेटापॉपुलेशन विशेषज्ञ विंसेंट वान डेर मेरवे ने मंगोलिया से न्यूज एजेंसी को बताया, "अत्यधिक गीली स्थितियों के कारण रेडियो कॉलर संक्रमण पैदा कर रहे हैं. दोनों चीतों की मौत सेप्टिसीमिया से हुई है. चीतों की गर्दन के आसपास अन्य जानवरों द्वारा पहुंचाए गए घाव नहीं थे. वे डर्मेटाइटिस और मायियासिस के बाद सेप्टीसीमिया के मामले थे."
मेरवे ने कहा कि वह द चीता मेटापॉपुलेशन इनिशिएटिव की ओर से दक्षिण अफ्रीका में चीता मेटापॉपुलेशन प्रोजेक्ट का प्रबंधन करते हैं. साथ ही दक्षिण अफ्रीका से भारत में चीतों को लाने वालों में वह भी शामिल थे.
भारत में चीता परियोजना के भाग्य के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा, "भारत में अभी भी भेजे गए चीतों की आबादी का 75 प्रतिशत जीवित और स्वस्थ हैं. इसलिए जंगली चीता के पुनरुत्पादन के लिए सामान्य मापदंडों के भीतर देखी गई मृत्यु दर के साथ सब कुछ अभी भी ट्रैक पर है."
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