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नेताओं पर क्यों चुप रहते हैं शैलेश लोढ़ा? बोले- गाली देने से भ्रष्टाचार ठीक नहीं होता
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'वाह भई वाह' जैसा शानदार शो लेकर टीवी पर आने वाले कवि-अभिनेता शैलेश लोढ़ा ने साहित्य आजतक 2023 के मंच पर शिरकत की. अपनी कविताओं के लिए दर्शकों में मशहूर शैलेश ने अपने बचपन के दौर को भी जिया और मजेदार बातें कीं. क्या शैलेश राजनीति के दरवाजे पर भी दस्तक दे रहे हैं? उन्होंने इस सवाल का भी जवाब दिया.
टीवी पर अपनी दमदार पहचान रखने वाले कवि और अभिनेता शैलेश लोढ़, शनिवार को साहित्य आजतक 2023 के मंच पर नजर आए. शैलेश ने अपने दमदार अंदाज में मंच से जनता का खूब दिल जीता. छोटी छोटी घटनाओं पर कविताओं और मजेदार तुकबंदियों के जरिए बड़ी बात कह जाने का हुनर रखने वाले शैलेश पूरे रंग में नजर आए. शैलेश के सेशन 'हिंदी कविता का शो मैन' को जनता ने बहुत एन्जॉय किया.
चुनावी मौसम में शैलेश के राजस्थान आने-जाने पर काफी चर्चा हुई. इस बात पर टिप्पणी करते हुए शैलेश ने कहा, ' राजस्थान मेरा घर है. अब क्या अपने घर भी न जाऊं?' अपने सेशन में आगे भी राजनीति की चर्चा होने पर शैलेश ने कहा कि ये उनका विषय नहीं है. उन्होंने कह कि वो भ्रष्टाचार पर इसलिए नहीं लिखते क्योंकि गाली देने से सिस्टम ठीक नहीं हो जाएगा और न इससे कोई व्यवस्था बदलेगी. अपने तुकबंदी के अंदाज में उन्होंने कहा कि जब देश का हर एक आदमी अपने काम को आसान बनाने के लिए भ्रष्टाचार का सहारा लेता है, तो व्यवस्था को गाली देने से क्या ही बदलेगा!
खुद को कवि नहीं मानते शैलेश, पिता ने बचपन से किया सपोर्ट शैलेश ने कहा कि वो खुद को कवि नहीं मानते, वो तो जनता की दरियादिली है जो उनके इस हुनर को सपोर्ट मिला. उन्होंने कहा, 'कविता मेरी आत्मा है, अभिनय मेरा शरीर है. मैं स्वयं को कवि नहीं कहता, बस कविता की समझ है.'
शैलेश ने बताया कि वो 10-12 साल की उम्र से तुकबंदियां करने लगे थे. उन्होंने कहा, 'इस उम्र में जो तुकबंदी करने लगे वो कविता कर नहीं रहा, कोई करवा रहा है.' शैलेश ने आगे बताया, 'मैं जब कविता पढ़ने लगा तो पिता जी ने ये किया कि उस बच्चे को स्कूटर पर बिठाकर ले गए, जहां मैंने अपनी पहली कविता पढ़ी, उनकी यही खूबी है कि उन्होंने रोका नहीं.'
जब दो बच्चों को देखकर पिघला शैलेश का मन अपनी कविताओं पर बात करते हुए शैलेश ने बताया कि एक बार वो अपनी पत्नी और बच्चों के साथ रेस्टोरेंट में बैठे थे और वहां के पारदर्शी कांच से उन्हें उम्मीद भरी नजरों से देख रहे दो बच्चे नजर आ रहे थे. इस बात पर उनका मन इस तरह द्रवित हुआ कि उन्होंने दो लाइनें लिख डालीं:
'महंगे रेस्टोरेंट में बैठा पिज्जा का इंतजार करता मैं और पारदर्शी कांच से अंदर झांकते वे दो बच्चे जिनकी आंखों में सिर्फ एक रोटी की आशा है क्या यही जीवन की परिभाषा है?'