टाइप-1 डायबिटीज मरीजों के लिए ICMR की गाइडलाइन जारी, भारतीयों की चिंता बढ़ा देगी रिपोर्ट
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साल 2019 में डायबिटीज से पूरी दुनिया में 40 लाख से ज्यादा मौतें हुई थीं. इतना ही नहीं, ये किडनी डिसीज़, ब्लाइंडनेस और दिल से जुड़ी बीमारियों को बदतर स्थिति में पहुंचाने का भी कारण है. डायबिटीज के मरीजों की दूसरी सबसे बड़ी आबादी भारत में रहती है. और पूरी दुनिया के डायबिटीज मरीजों में हर छठा इंसान भारतीय है.
कोरोना वायरस की बीमारी डायबिटीज रोगियों के लिए बेहद घातक साबित हुई है. SARS-CoV-2 से डायबिटीज मरीजों की मौत और गंभीर रूप से बीमार होने का जोखिम ज्यादा देखा गया है. इस बीच इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR) ने टाइप-1 डाइबिटीज को लेकर एक गाइडलाइन जारी की है.
तीन दशक में 150% मामले बढ़े रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2019 में डायबिटीज से पूरी दुनिया में 40 लाख से ज्यादा मौतें हुई थीं. इतना ही नहीं, ये किडनी डिसीज़, ब्लाइंडनेस और दिल से जुड़ी बीमारियों को बदतर स्थिति में पहुंचाने का भी कारण है. डायबिटीज के मरीजों की दूसरी सबसे बड़ी आबादी भारत में रहती है. बीते तीन दशक इस बात के गवाह हैं कि देश में डायबिटीज मरीजों की संख्या में करीब 150 प्रतिशत का इजाफा हुआ है.
भविष्य में मामले बढ़ने का खतरा देश में प्री-डायबिटीज के तेजी से बढ़ते मामले इस बात का संकेत हैं कि भविष्य में इसके मामले और ज्यादा बढ़ेंगे. भारत में डायबिटीज हाई इनकम से लेकर मिडिल इनकम और वंचित वर्गों तक पहुंच गया है. चिंता की बात ये है कि जिस उम्र में टाइप-2 डायबिटीज के मामले सामने आ रहे हैं, उसमें प्रगतिशीलता की कमी देखी जा रही है. इसमें शहरी और ग्रामीण दोनों क्षेत्रों के 25-34 साल के लोग शामिल हैं.
10 लाख से ज्यादा बच्चे-किशोर टाइप-1 का शिकार पूरी दुनिया में 10 लाख से भी ज्यादा बच्चे और किशोर टाइप-1 डायबिटीज का शिकार हैं. 'इंटरनेशनल डायबिटीज फेडरेशन' का एक हालिया अनुमान बताता है कि टाइप-1 डायबिटीज के सबसे ज्यादा मामले भारत में हैं. टाइप-1 डायबिटीज से पीड़ित मरीजों को सर्वाइव, इंसुलिन और थैरेपीज के इस्तेमाल के लिए सपोर्ट की आवश्यकता होती है. साथ ही इस बीमारी के चलते उन्हें एक कलंक, प्रतिबंध और कई प्रकार की जटिलताओं के साथ जीना पड़ता है.
डायबिटीज मैनेजमेंट की राह में तरक्की डायबिटीज के सभी पहलुओं का मैनेजमेंट, विशेष रूप से ग्लाइसेमिक कंट्रोल, अब टाइप-1 डायबिटीज मैनेजमेंट का मानक है. साथ ही डायबिटीज की देखभाल के लिए टेक्नोलॉजी में बड़ी तरक्की हुई है जिसमें नए इंसुलिन एनालॉग, पम्प, ऑटोमेटिड इंसुलिन डिलीवरी सिस्टम एंड सेंसर जैसी तकनीकें शामिले हैं. इसके अलावा, डायबिटीज मैनेजमेंट के लिए प्रोवाइडर्स की एक मल्टीडिसिप्लिनरी टीम की जरूरत है.
भारत में डायबिटीज केयर की स्थिति कैसी? भारत में डायबिटीज केयर क्वालिटी कई सारे कारकों पर निर्भर करती है. जैसे कि सेवाओं की उपलब्धता, दवाएं खरीदने में सक्षम, केयर प्रोवाइडर्स का नजरिया और व्यावहार, डायबिटीज के जानकार और विशेषज्ञों की कमी, मानकीकृत प्रयोगशालाएं और ट्रीटमेंट गाइडलाइंस की कमी. हालांकि टाइप-1 डायबिटीज मैनेजमेंट के लिए कई अंतर्राष्ट्रीय गाइडलांइस उपलब्ध हैं.
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