![ज्ञानवापी मस्जिद विवाद को लेकर क्या कह रहा है इस्लामिक देशों का मीडिया?](https://akm-img-a-in.tosshub.com/aajtak/images/story/202205/gyanvapi_23-sixteen_nine.jpg)
ज्ञानवापी मस्जिद विवाद को लेकर क्या कह रहा है इस्लामिक देशों का मीडिया?
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ज्ञानवापी मस्जिद का मुद्दा भारत में तो छाया है ही, मुस्लिम देशों में भी इस मुद्दे की काफी चर्चा हो रही है. मुस्लिम देशों की मीडिया में इससे संबंधित खबरों को जगह दी जा रही है. पाकिस्तान, तुर्की और बांग्लादेश के अखबारों ने मस्जिद से संबंधित खबरों को प्रमुखता से छापा है.
भारत में ज्ञानवापी मस्जिद का मामला कई दिनों से चर्चा के केंद्र में है. वाराणसी की इस मस्जिद में हिंदू पक्ष ने शिवलिंग मिलने का दावा किया है लेकिन मुस्लिम पक्ष इस बात से इनकार करता है और उसका कहना है कि वो शिवलिंग नहीं बल्कि एक फव्वारा है. सुप्रीम कोर्ट ने शिवलिंग मिलने वाले जगह को संरक्षित रखने का आदेश देते हुए कहा है कि मुस्लिम पक्ष वहां पहले की तरह नमाज अदा करता रहेगा. फिलहाल ये मामल निचली अदालत में चल रहा है. भारत के इस विवाद पर मुस्लिम दुनिया की भी नजर है. पाकिस्तान के अखबारों में इस खबर को काफी तरजीह दी जा रही है.
क्या बोले पाकिस्तान के अखबार
पाकिस्तान के अखबारों में ज्ञानवापी मस्जिद के मामले को प्रमुखता से जगह दी जा रही है. पाकिस्तान के प्रमुख अखबार डॉन ने इस मुद्दे को लेकर प्रकाशित अपनी एक खबर में लिखा है कि भारत की निचली अदालतों ने इस तरह के विवादों को बढ़ाने का काम किया है.
अखबार ने लिखा है कि बाबरी मस्जिद को तोड़ने के लिए भी लोगों को जिला अदालत के फैसले ने ही उकसाया था. अयोध्या विवाद की सुनवाई करने वाले जस्टिस एस. यू. खान के एक बयान का हवाला देते हुए रिपोर्ट में लिखा गया है, '1986 में उत्तर प्रदेश की एक जिला अदालत के एक आदेश का ही परिणाम था जिसने पांच सालों बाद हिंदुत्व कार्यकर्ताओं को अयोध्या में बाबरी मस्जिद को तोड़ने के लिए उकसाया.'
पाकिस्तान के अखबार द एक्सप्रेस ट्रिब्यून ने भी ज्ञानवापी मस्जिद मामले को लेकर कई रिपोर्ट प्रकाशित की है. अपनी एक रिपोर्ट में अखबार समाचार एजेंसी रॉयटर्स के हवाले से लिखता है, 'प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के निर्वाचन क्षेत्र में स्थित ज्ञानवापी मस्जिद, उत्तर प्रदेश की कई मस्जिदों में से एक है, जिसके बारे में कुछ हिंदुओं का मानना है कि इसे मंदिरों को तोड़कर बनाया गया था.'
अखबार आगे लिखता है कि भारत के 20 करोड़ मुसलमानों के नेता मानते हैं कि इस तरह मस्जिद के अंदर सर्वेक्षणों को भाजपा की मौन स्वीकृति है. भाजपा के इस प्रयास को वो अपने धर्म को कमजोर करने के रूप में देखते हैं.
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