'जमानत के लिए पहले पासपोर्ट बनवाओ...', सेशन कोर्ट के इस आदेश पर बॉम्बे हाईकोर्ट हुआ हैरान, जताई नारजगी
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न्यायमूर्ति भरत देशपांडे की पीठ उत्तरी गोवा के कैरनज़ालेम निवासी द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसके खिलाफ अगासैम पुलिस स्टेशन में हत्या के प्रयास का मामला दर्ज किया गया था. मामले में 18 वर्षीय आरोपी ज़काउल्ला खाज़ी को गिरफ्तार किया गया था.
बॉम्बे हाई कोर्ट की गोवा पीठ ने सेशन कोर्ट के जज के एक फैसले पर हैरानी जताई है. असल में सेशन कोर्ट ने जमानत के लिए आरोपी के सामने ऐसी शर्त रखी थी, जिसकी जरूरत आमतौर पर नहीं होती है. दअरसल, रोपी को जमानत देने से पहले सेशन कोर्ट ने उसे अपना पासपोर्ट जमा कराने का आदेश दिया थ.
आरोपी के पास पासपोर्ट नहीं था, ऐसे में जब उसने कोर्ट को इस बात की जानकारी दी और जांच एजेंसी ने भी यही कहा तो सेशन कोर्ट ने आरोपी को पासपोर्ट बनवाने के लिए कह दिया.
न्यायमूर्ति भरत देशपांडे की पीठ उत्तरी गोवा के कैरनज़ालेम निवासी द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसके खिलाफ अगासैम पुलिस स्टेशन में हत्या के प्रयास का मामला दर्ज किया गया था. मामले में 18 वर्षीय आरोपी ज़काउल्ला खाज़ी को गिरफ्तार किया गया था.
बाद में 24 अप्रैल, 2024 को गोवा सत्र न्यायालय ने जमानत दे दी. जमानत देते समय लगाई गई शर्तों में से एक यह थी कि खाजी को अपना पासपोर्ट अदालत में जमा करना होगा. खाजी की मां ने अदालत को बताया कि उसके पास पासपोर्ट नहीं है. हालाँकि, इस पर विचार नहीं किया गया. इसके बाद, खाजी ने पासपोर्ट के बारे में जमानत की शर्त में संशोधन के लिए एक आवेदन दायर किया. खाजी ने एक हलफनामा भी दायर किया कि उन्होंने कभी भी पासपोर्ट के लिए आवेदन नहीं किया है और इसलिए, वह जमानत पर रिहा करने के लिए लगाई गई शर्तों के पूरा करने के लिए इसे नहीं पे कर पाएंगे.
सत्र अदालत ने जांच अधिकारी की राय मांगी थी, जिन्होंने स्पष्ट रूप से कहा था कि जांच में यह भी पता चला है कि खाजी ने आज तक कभी भी पासपोर्ट के लिए आवेदन नहीं किया है. खाजी की ओर से पेश वकील विभव अमोनकर ने कहा कि एडीशनल सेशन कोर्ट को शर्त में छूट के लिए आवेदन पर विचार करना चाहिए था और अधिक से अधिक, याचिकाकर्ता को पासपोर्ट, यदि कोई हो, जमा करने का निर्देश देना चाहिए था.
हालाँकि, ट्रायल कोर्ट ने 13 मई, 2024 को पारित अपने आदेश में कहा कि चूंकि शर्त लगाई गई है, इसलिए आरोपी को इसका पालन करना होगा. अमोनकर ने आगे कहा कि ऐसी शर्त को निलंबित करके और खाजी को चार महीने की अवधि के भीतर पासपोर्ट जमा करने का निर्देश देकर एक अजीब तरीका अपनाया गया था. अमोनकर ने कहा कि इसका मतलब साफ है कि खाजी पहले पासपोर्ट के लिए आवेदन करें और फिर इसे अदालत में जमा करें. शर्त को चार महीने के लिए निलंबित करते हुए खाजी को जेल से जमानत पर रिहा करने की अनुमति दी गई. न्यायमूर्ति देशपांडे ने अमोनकर से सहमति व्यक्त की और कहा कि जमानत की शर्त को केवल "पासपोर्ट जमा करना होगा, यदि कोई हो" के रूप में पढ़ा जाना चाहिए. यानी कि अगर आरोपी के पास पहले से कोई पासपोर्ट हो तो उसे वह जमा करना होगा, न कि उसे तुरंत बनवाना होगा.
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