गुज्जर-बकरवाल, महिला-युवा और जम्मू... BJP के 'मिशन कश्मीर' के ये हैं फोकस पॉइंट
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भारतीय जनता पार्टी ने जम्मू कश्मीर के चुनाव में गुज्जर बकरवाल के साथ ही महिलाओं और युवाओं पर फोकस कर दिया है. बीजेपी के मिशन कश्मीर के फोकस पॉइंट क्या हैं?
जम्मू कश्मीर में 10 साल बाद होने जा रहे विधानसभा चुनाव के लिए प्रचार का शोर बढ़ता जा रहा है. राज्य के दर्जे में बदलाव और विशेष दर्जा वापस लिए जाने के बाद पहली बार हो रहे विधानसभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने भी पूरी ताकत झोंक दी है. जम्मू कश्मीर में चुनाव जीत सरकार बनाने का दावा कर रही भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने लोक-लुभावन घोषणा पत्र जारी करने के साथ ही चुनाव प्रचार के लिए केंद्रीय मंत्रियों की फौज भी उतार दी है. बीजेपी के मिशन कश्मीर के फोकस पॉइंट क्या हैं? इसे पांच पॉइंट में समझा जा सकता है.
1- पहाड़ी समुदाय
जम्मू कश्मीर में 2011 की जनगणना के मुताबिक करीब 10 लाख पहाड़ी समुदाय की आबादी है. नेशनल कॉन्फ्रेंस का कोर वोटर रहा यह समुदाय राजौरी, हंदवाड़ा, अनंतनाग, पीर-पंजाल, पुंछ और बारामूला जैसे इलाकों की करीब दर्जनभर विधानसभा सीटों पर जीत-हार तय करने में निर्णायक भूमिका निभाने की स्थिति में है. बीजेपी अगर कश्मीर घाटी की करीब 10 सीटें जीतने की उम्मीद जाहिर कर रही है तो उसके पीछे पहाड़ी वोट का गणित भी है.
पहाड़ी समुदाय वर्षों से अनुसूचित जनजाति का दर्जा दिए जाने की मांग कर रहा था. गृह मंत्री अमित शाह ने पहाड़ी समाज के लोगों को एसटी का दर्जा दिए जाने का आश्वासन दिया था. गुज्जर और बकरवाल समाज के लोग पहाड़ी समाज को एसटी का दर्जा दिए जाने के विरोध में उतर आए, प्रदर्शन भी किया लेकिन सरकार ने बीच का रास्ता निकालते हुए ये वादा पूरा किया. पहाड़ी समुदाय की चार जातियों पहाड़ी एथनिक ग्रुप, पाडरी, कोली और गद्दा ब्राह्मण को एसटी में शामिल किया गया है अब बीजेपी को विधानसभा चुनाव में पहाड़ी समाज से वोट के रूप में रिटर्न गिफ्ट की उम्मीद है.
2- गुज्जर और बकरवाल
बीजेपी की नजर गुज्जर और बकरवाल वोटबैंक पर भी है. जम्मू कश्मीर में गुज्जर और बकरवाल की आबादी 2011 की जनगणना के मुताबिक 15 लाख के करीब है. इस समुदाय को 1992 में एसटी का दर्जा मिलने के बाद सरकारी नौकरियों में 10 फीसदी आरक्षण मिलता था लेकिन राजनीतिक प्रतिनिधित्व के लिए किसी तरह के आरक्षण का कोई प्रावधान नहीं था. अब राज्य पुनर्गठन के बाद हुए नए परिसीमन में अनुसूचित जनजाति के लिए नौ सीटें आरक्षित की गई हैं जिससे इस समाज के राजनीतिक प्रतिनिधित्व का रास्ता साफ हो गया है. बीजेपी को इस समाज से भी समर्थन की उम्मीद है.
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