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खत्म हुआ इस एयरलाइन का अस्तित्व... संपत्तियां भी बिकेंगी, सुप्रीम कोर्ट का बड़ा आदेश
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एनसीएलएटी ने जेट एयरवेज का मालिकाना हक मंजूर हो चुके रिजॉल्यूशन प्लान के तहत जालान-कालरॉक कंसोर्टियम (JKC) को देने का फैसला सुनाया था. हालांकि इस फैसले के खिलाफ SBI और बाकी क्रेडिटर्स ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर दी थी.
संकट से जूझ रही एयरलाइन जेट एयरवेज को पहले ही बंद कर दिया गया था. अब सुप्रीम कोर्ट ने इसकी संपत्तियों को बेचने का आदेश दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने आज यानी 7 नवंबर को दिक्कतों से जूझ रही इस एयलाइन को लिक्विटेड करने यानी इसकी संपत्ति को बेचने का आदेश दे दिया है. देश की सर्वोच्च अदालत ने इसे लेकर नेशनल कंपनी लॉ अपीलेट ट्रिब्यूनल (NCLAT) के फैसले को खारिज कर दिया.
एनसीएलएटी ने जेट एयरवेज का मालिकाना हक मंजूर हो चुके रिजॉल्यूशन प्लान के तहत जालान-कालरॉक कंसोर्टियम (JKC) को देने का फैसला सुनाया था. हालांकि इस फैसले के खिलाफ SBI और बाकी क्रेडिटर्स ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर दी थी. सुप्रीम कोर्ट ने जेट एयरवेज को फिर से ट्रैक पर लाने के लिए कंसोर्टियम की प्रस्तावित समाधान योजना को रद्द कर दिया और कहा कि कंसोर्टियम निर्धारित समय में पहला किश्त भी नहीं चुका सकी है.
तीन जजों की पीठ ने सुनाया फैसला सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले को 16 अक्टूबर को ही सुरक्षित कर लिया था और इसे चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई में तीन जजों की पीठ ने सुनाया. जालान कालरॉक ने 150 करोड़ रुपये की जो बैंक गारंटी की थी, उसे भी जब्त कर लिया गया है.
2019 में बंद हो गई थी एयरलाइन वित्तीय संकटों के कारण जेट एयरवेज को साल 2019 में बंद कर दिया गया था. सबसे बड़े लेंडर SBI ने NCLT मुंबई में दिवालिया कार्यवाही शुरू की थी और इसके बाद कंपनी के रिजॉल्यूशन की प्रोसेस शुरू की गई थी. साल 2021 में जालान-कालरॉक ने इसके लिए बोली लगाई थी. हालांकि मामला इतना आगे बढ़ा और मामला सुप्रीम कोर्ट तक चला गया.
सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर 12 मार्च को NCLAT ने जेट एयरवेज का स्वामित्व JKC को ट्रांसफर करने के फैसले को सही ठहराया था, जबकि इससे पहले भी NCLT ने जनवरी में JKC को स्वामित्व ट्रांसफर करने की अनुमति दी थी और लेंडर्स से 90 दिनों के भीतर स्वामित्व ट्रांसफर करने का आदेश दिया था. इसके बाद फिर यह मामला सुप्रीम कोर्ट में गया, जिसमें एसबीआई की अगुवाई में कमेटी ऑफ क्रेडिटर्स का कहना था कि जेट एयरवेज को पटरी पर लाने के लिए जो योजना पेश की गई है वह लेंडर्स क्े हिसाब से सही नहीं है. उन्होंने NCLAT के उस आदेश को चुनौती दी, जिसमें रिजॉल्यूशन प्लान को सही ठहराया गया था.
350 करोड़ रुपये का दावा कंसोर्टियम ने रिजॉल्यूशन प्लान के तहत जेट एयरवेज का स्वामित्व पाने के लिए 350 करोड़ रुपये के पूंजी निवेश का वादा किया था. NCLAT की तीन सदस्यीय पीठ ने 150 करोड़ रुपये के बैंक गारंटी को इससे एडजस्ट करने की मंजूरी दी थी. लेंडर्स ने यह भी आरोप लगाया कि वे हर महीने लगातार 22 करोड़ रुपये के हिसाब से हवाई अड्डे के शुल्क और अन्य खर्चों का भुगतान कर रहे हैं, और अब तक 350 करोड़ रुपये से अधिक खर्च कर चुके हैं. सुप्रीम कोर्ट में सीनियर एडवोकेट हरीश साल्वे ने लेंडर्स की तरफ से कहा कि एक एयरलाइन को कम से कम 20 विमान की आवश्यकता होती है, जबकि कंसोर्टियम ने केवल पांच विमान हासिल किए हैं.
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