क्यों सबकुछ डाइजेस्ट कर लेने वाली चीनी आबादी नहीं पचा पाती दूध? 90 प्रतिशत से ज्यादा को है ये बीमारी
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चीन के बारे में माना जाता है कि वहां लोग ऐसी-ऐसी चीजें पचा जाते हैं, जो दुनिया के कई हिस्सों में खाई तक नहीं जातीं. लेकिन इस देश की बड़ी आबादी को दूध के डाइजेशन में परेशानी होती है. वर्ल्ड इकनॉमिक फोरम के अनुसार, साल 1961 में वहां प्रति व्यक्ति सालाना दो लीटर दूध ही पीता था. दूध से चीन के बैर का एक नाम है- लैक्टोज इनटॉलेरेंस.
कोरोना के शुरुआती वक्त में चीन काफी घिरा हुआ था. कई देश आरोप लगा रहे थे कि कोरोना वायरस चीन के वुहान मार्केट से फैला. ये वो बाजार है, जहां एग्जॉटिक एनिमल मीट मिलता है, जैसे सांप, चमगादड़. चीन ने आरोपों को सिरे से नकारते हुए तब वुहान मार्केट को बंद करा दिया. ये भी पक्का नहीं हो सका कि वायरस आखिर फैला कहां से. लेकिन इस बीच चीन के सबकुछ खाकर पचा सकने की बात खूब कही जाने लगी. लेकिन चाइनीज आबादी के लिए दूध पचाना मुश्किल रहा.
क्या कहता है अध्ययन
चीन की थोड़ी-बहुत नहीं, बल्कि करीब 92% आबादी लैक्टोज इनटॉलेरेंट है. अमेरिकी बायोमेडिकल लाइब्रेरी नेशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसिन में ये स्टडी छपी है. अध्ययन के अनुसार सबसे ज्यादा प्रभावित लोग नॉर्थईस्टर्न चीन से हैं, लेकिन बाकी हिस्सों में भी असर 80 प्रतिशत से ज्यादा है, यानी लोगों को दूध के पाचन में समस्या रहती है. काफी सारे लोग ऐसे हैं जो दूध बिल्कुल भी पचा नहीं सकते, वहीं बाकी आबादी में मालएब्जॉर्प्शन की परेशानी है. वे डाइजेस्ट तो कर पाते हैं, लेकिन दूध के पोषक तत्वों का पूरा फायदा नहीं मिल पाता.
बच्चों में भी उम्र के साथ बढ़ती है परेशानी
चाइनीज प्रिवेंटिव मेडिसिन एसोसिएशन (CPMA) ने भी एक अध्ययन में पाया कि छोटे बच्चों को भले ही दूध दिया जाए, लेकिन जैसे-जैसे उनकी उम्र बढ़ती है, दूध का पाचन मुश्किल होता चला जाता है. CPMA की मानें तो 11 से 14 साल के 40% बच्चों में लैक्टोज इनटॉलेरेंस पैदा हो चुका होता है.
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