क्योंकि अतीत से जुड़ा है भविष्य...मंदिर-मस्जिद विवादों पर RSS से निकल रही दो तरह की आवाज |Opinion
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आरएसएस के मुखपत्र ऑर्गनाइजर ने संभल मस्जिद विवाद पर अपनी लेटेस्ट कवर स्टोरी पब्लिश की है, जिसमें कहा गया है कि विवादित स्थलों और संरचनाओं का वास्तविक इतिहास जानना जरूरी है.
पिछले कुछ समय से देश में हर मस्जिद के नीचे मंदिर खोजने के मामले तेजी से बढ़े हैं. इस कारण देश के कई शहरों में मंदिर-मस्जिद विवाद बहुत तेजी से बढ़ा है. अदालतों में ऐसे मामले लगातार बढ़ रहे हैं जिसमें इतिहास का हवाला देकर किसी मस्जिद के सर्वे की रिक्वेस्ट की जा रही है. विशेषकर उत्तर प्रदेश में संभल के जामा मस्जिद और अजमेस की दरगाह के विवाद में आने के बाद देश में नए सिरे से मंदिर-मस्जिद विवाद पर बहस शुरू हुई है. देश में मस्जिदों के सर्वे की मांग के बीच राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) प्रमुख मोहन भागवत ने कहा था कि ऐसे मुद्दों को उठाना अस्वीकार्य है. लेकिन अब आरएसएस के मुखपत्र ऑर्गेनाइजर की राय भागवत से बिल्कुल अलग नजर आ रही है.
आरएसएस के मुखपत्र ऑर्गनाइजर ने संभल मस्जिद विवाद पर अपनी लेटेस्ट कवर स्टोरी पब्लिश की है, जिसमें कहा गया है कि विवादित स्थलों और संरचनाओं का वास्तविक इतिहास जानना जरूरी है. पत्रिका में कहा गया है कि जिन धार्मिक स्थलों पर आक्रमण किया गया या ध्वस्त किया गया, उनकी सच्चाई जानना सिविलाईजेशनल जस्टिस हासिल करने जैसा है. पर यह गौर करने लायक है कि कवर स्टोरी और संपादकीय ने मंदिर-मस्जिद विवादों पर भागवत के सावधानीपूर्वक बयान से दूरी बनाए रखी है और यह तर्क दिया है कि धार्मिक स्थलों के ऐतिहासिक सच को जानने की मांग आवश्यक है.
1-मुस्लिम समुदाय सच्चाई को स्वीकार करे
आरएसएस के मुखपत्र में कहा गया कि जिन धार्मिक स्थलों पर हमला किया गया या जिन्हें ध्वस्त किया गया, उनकी सच्चाई जानना जरूरी है. सिविलाईजेशनल जस्टिस के लिए और सभी समुदायों के बीच शांति और सौहार्द का प्रचार करने के लिए इतिहास की समझ होना जरूरी है.
संपादकीय में जोर दिया गया है कि इस तरह की शांति और सौहार्द तभी प्राप्त किया जा सकता है जब मुस्लिम समुदाय सच्चाई को स्वीकार करे. इस बात को समझाने का प्रयास किया गया है कि इसे नकारना अलगाववाद को प्रोत्साहित करने जैसा है. संपादकीय में कहा गया है कि केवल इसलिए न्याय और सच्चाई जानने के अधिकार को नकारना कि कुछ औपनिवेशिक मानसिकता वाले अभिजात्य और छद्म बुद्धिजीवी घटिया धर्मनिरपेक्षता का पालन करना चाहते हैं, यह कट्टरवाद, अलगाववाद और शत्रुता को प्रोत्साहित करने वाला होगा.
पत्रिका की कवर स्टोरी के हिस्से के रूप में आदित्य कश्यप द्वारा लिखित लेख हीलिंग द हिस्टोरिकल वूंड्स में कहा गया है क ऐतिहासिक गलतियों को स्वीकार करना अन्याय को मान्यता देने की नींव तैयार करता है, जो संवाद और उपचार के लिए आधार बनाता है. यह पारदर्शिता के माध्यम से समुदायों के बीच आपसी सम्मान और समझ को भी बढ़ावा देता है... हालांकि सत्य को उजागर करने और स्वीकार करने की यात्रा जटिल और अक्सर कठिनाइयों से भरी हो सकती है, लेकिन इसमें ऐतिहासिक घावों को भरने और सभ्यता को न्याय प्रदान करने की क्षमता है. सत्य और सुलह के संतुलन से, हम अतीत का सम्मान करते हैं और एक सामंजस्यपूर्ण भविष्य की नींव रखते हैं ...क्योंकि अतीत से ही भविष्य का जन्म होता है.
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